हिंदुस्तान के किसी राज्य में बिजली के लिए गोली क्यों चली ? क्या ये श्रीलंका या पाकिस्तान है !!!

N4N DESK : आखिर गोली क्यों चली बारसोई में ? हिन्दुस्तान एक ऐसा देश जहां बिजली का उत्पादन खपत से ज्यादा है, जिसके उत्पादन की तारीफ स्वयं ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधान मंत्री ने की हो। वह भी एक अंतर्राष्ट्रीय मंच पर। ऐसे देश के एक राज्य में क्यों चली गोली! बिजली के कमी के लिए ? क्या इससे भी शर्मनाक कुछ हो सकता है! इतना mismanagement क्यों ? गलती अधिकारीयों को हैं या मंत्री की या मुख्यमंत्री की ये पहला प्रश्न हैं ?

आजादी के बाद 2019 का चुनाव एकमात्र ऐसा चुनाव था। जिसमे "ELECTRICITY FOR ALL" यानी घर घर बिजली का वायदा नही था। पहुंच चुकी थी बिजली देश के हर घर तक। बिहार में भी चुनाव हुआ था और तब नीतिश कुमार बिजली की उपलब्धता के दम पर ही चुनाव जीते थे, और हम बिहारियों ने उन्हें जिताया था। ये सवाल तब किसी के दिमाग में नहीं आया की बिहार में बिजली काफी महंगी हैं। क्योंकि लालू राज के अंधेरे के आदि हम बिहारियो के लिए बिजली का होना ही एक बड़ा achievement था। हमारे लिए ये एक बड़ी बात थी की हम लोग light पंखा चला पा रहे है। उसके पीछे की गड़बड़िया या संभावित घोटालों के बारे में किसी ने सोचा ही नहीं था।

"बिजली के लिए मारे गए बिहारी और सीएम कहते हैं हमारे पास   बिजली ज्यादा हैं"

अब समझिए बिहार के परिदृश्य को , क्यों हमारे यहां बिजली की कमी चल रही हैं। कहा कहां सरकार ने हमसे झूठ बोला या बातें छुपाई। Vision की कमी , अन्य राज्य जहां अपनी आवयश्कता से कहीं अधिक बिजली का PPA कर के रखते हैं वहीं बिहार ऐसा नहीं करता। या शायद इन्हे पूरा भरोसा है की बिहार में ज्यादा बिजली नहीं लगेगी। गुजरात जैसे राज्य जहां जरूरत 12500 MW की होती हैं वो 16000 MW की future तैयारी रखता हैं। हमारे मुख्य्मंत्री ने अपनी पीठ थपथपाई थी की हमारे यहां जरूरत से ज्यादा बिजली है तो फिर क्यों हुआ गोलीकांड ? क्यों जनता उतरी रोड पर? मुख्यमंत्री का कथन झूठ था या इन लडको की बारसोई में मौत ?

सरकार ने दिए पैसे

एक घटना का जिक्र यहां करना जरूरी हैं की पिछ्ले साल ही हिंदुस्तान के तीनों spot exchanges ने बिहार को ban कर दिया था बिजली खरीदने बेचने से क्योंकि पैसा बहुत बकाया था, और आश्चर्यजनक रूप से बिहार ने तुरंत पैसा दे दिया था। अगर पैसा था ही तो पहले क्यों नहीं दिया था। अब सोचने वाली बात और प्रश्न ये हैं की क्या और भी suppliers ने बिजली देना बंद कर दिया हैं ? जब चर्चा होनी रही है तो ध्यान रहे की अभी हाल फिलहाल में ही मुख्यमंत्री ने हमारे गाड़े खून पसीने की कमाई से इसी बिजली विभाग को 13114 करोड़ नुकसान भरने के लिए दे दिए थे। हर साल के दिए जाने वाले हजारों करोड़ के अलावा, जिसका कोई लाभ हम उपभोक्ताओं को नही मिलता। बिजली महंगी हुई हैं। हमारी वो चाहे नाक को हाथ घुमा के पकड़ के बड़ाई गई हो। यानी fix charges दुगुना कर के या यूनिट slab को घटा के। 

बिहार में महँगी बिजली

कुल मिला के मामला ये हैं की मंहगी ही सही बिजली मिल रही थी। ये अलग बहस का मुद्दा है की बिजली की खरीद दरें बिहार की सबसे ज्यादा क्यों हैं। ट्रांसमिशन लॉसेस यानी संचरण हानि इतनी ज्यादा क्यों हैं। कुल मिला जुला के सब कुछ हमारा ही गया और लोग भी हमारे ही मरे भी। फैसला जनता को लेना हैं की गलती किसकी हैं। झूठ किसने बोला, इतनी गर्मी में हमारे पैसे से AC में बैठने वाली सरकार या धूप से , सुखाड़ से परेशान वो किसान जो अपने बच्चे अपना परिवार के लिए धान उगाने की चिंता में, अपने बच्चे के अच्छे पड़ी की चिंता में अपनी चुनी हुई सरकार से गुहार लगाने गया था। कोई उससे धरनास्थल मिलने तक नही। किसी ने ये भी नही सोचा की एक बार झूठ की तसल्ली ही दे दे। इन लोगो से सरकार के लोगो ने मिलना पसन्द नही किया।  

अब आते हैं पुलिस पर

इसी महिने दो घटनाएं हुई हैं , मैं दोनों घटनाओं पे एक साथ ही लिख रहा हूं। भाजपा के नेताओ और कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज और बारसोई। हालांकि बारसोई में अब पुलिस का पक्ष हैं की ये एक criminal घटना है और इसमें पुलिस का हाथ नही है। हम इस पर भी चर्चा करेंगे। क्या आपको   पंजाब केशरी स्वर्गीय लाला लाजपत राय की मृत्यु याद है ? 17 नवंबर 1928 को 18 दिन दर्द सहन करने के बाद वे स्वर्ग सिधार गए थे। 18 दिन पहले उनके सिर पर पुलिस ने लाठी से वार किया था, बिहार पुलिस नही ब्रिटिश पुलिस ने। 

देश में अनेकों अनेक कानून है जिनको जानना और समझना जरूरी हैं, थोड़ा बहुत मैं लिख रहा हूं। आप भी सोचिए, और सोच विचार के बाद मुझे ऐसा लगता हैं की या तो बिहार पुलिस की ट्रैनिंग नही हुई हैं या इन्हे किसी ने आदेश दिया हैं। ऐसी घटनाओं को अंजाम देने के लिए। दोनों ही घटनाओं में ये जानना जरूरी है की किसने आदेश दिए गोली या लाठी चलाने का (a) magistrate (b) SHO (c) या किसी दूसरे पुलीस अधिकारी as demanded by 129 and 130 Cr PC, जिसने भी किया। उनके इस फैसले के पीछे के कारण public को बताना होगा। मुझे लगता हैं इन दोनो मामलो में कोर्ट में जाना चाहिए और बिहार पुलिस को कोर्ट में ये साबित करना होगा की भाजपा वाले कैसे में लाठी क्यों चली और बारसोई मामले में तो पुलिस गोली चलाती दिख रही है। किस पुलिस अधिकारी ने तय किया की force का quantum क्या होगा? किस तरह का force इस्तेमाल होगा ? और क्या ये force civil aur little बोला जा सकता हैं। कौन सी कार्यवाही पहले हुई (a) arrest of leaders (b ) tear gas (c) use of force। Force  deployment से पहले क्या DM aur SP ने police aur magistrates की combined breifing की थी ? 

पुलिस department को उन सारे constables/ अधिकारीयों के नाम, उनके date of appointment और period of basic training बताना चाहिए। आम नागरिक को ये अधिकार है की वो जाने की अगर ये constables trained थे तो ऐसी क्या ट्रेनिंग हैं जो सर पे गोली या लाठी चलाने की हैं ? इन सारे प्रश्नों के जवाब जानना इसलिए जरूरी हैं। क्योंकि जब गोली सर पर चलती हैं तो 302 लगता हैं। और जब जवाब मिल जाए तो इसपे कानूनी कार्यवाही भी जरूरी हैं।

धरना की थी तैयारी

अब आते है बारसोई के मामले में। जहां पुलिस का ऐसा मानना है की गोली किसी criminal ने चलाई तो यहां मेरा सबमिशन हैं की 22/7 को ही प्रशासन को शांतिपूर्ण धरने के बारे में सूचना दिया गया था। कुछ स्थानीय नेता और चुने हुए जनप्रतिनिधि , मुखिया संघ, त्रिस्तरीय सदस्य आदि भी इसमें शामिल थे तो आपकी क्या तैयारी थी ? लोग गए, लोकतन्त्र हैं, लोगो का नेतृत्व जनप्रतिनिधि कर रहे थे, पर कोई उनसे मिलने तक न आया, ये arrogance कहां से आया। सरकारी अधिकारियों में या बिहार के अधिकारी खुद को demi god समझने लगे हैं? 

विडियो में दिख रहा हैं की पुलिस ने गोली चलाई। हर गोली के वीडियो को ध्यान से देखेंगे तो कई firing कंधे की ऊंचाई पे है। सवाल है की कंधे की ऊंचाई पर गोली क्यों चलानी पड़ी। वो भी तब जब लोग आपसे काफी दूरी पर थे ? कैसे माना जाए की पुलिस या अधिकारियों की जान को खतरा था ? ये सारी बातें कोर्ट में साबित करना होगा पुलिस को। प्रशासन का मानना है की गोली किसी अपराधिक व्यक्ति ने चलाई पर कुछ भी स्पष्ट नही है उस video se, 3 लोगो को गोली लगी हैं। मुझे लगता है और भी CCTV camera होगा उस premises में। बाकी सब का वीडियो क्यों नही रिलीज किया जा रहा हैं ? लगता हैं कुछ तो हैं जिसकी परदेदारी हैं। इस मामले में जब सवालिया निशान पुलिस पर ही है तो क्या किसी तीसरी agency से इसका अन्वेषण नही होना चाहिए ? क्या पुलिस ने पारदर्शिता रखने के लिए पोस्ट मॉर्टम on camera किया है ? अनेकों सवाल हैं और एक ही शेर 

"वही क़ातिल वही शाहिद वही मुंसिफ़ ठहरे

अक़रबा मेरे करें क़त्ल का दावा किस पर "

संजीव श्रीवास्तव 

प्रदेश महासचिव, लोजपा( रामविलास)

(ये लेखक के अपने विचार है)