PATNA : बिहार में काम करने वाले और झारखंड के रहने
वाले पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा अब भाजपा से अलग हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी की आर्थिक नीतियों के खिलाफ हल्ला बोल रखा है। यशवंत सिन्हा भाजपा
के बॉरौ प्लेयर थे। न तो वे संघ के स्वयंसेवक थे और न ही भाजपा की नीतियो से
प्रभावित थे। 24 साल IAS अफसरी के बाद वे 1984 में जनता पार्टी में शामिल
हुए थे। 1996 में वे भाजपा में आये। भाजपा उनके लिए मुफीद साबित हुई। भाजपा के
दिग्गज नेताओं में वे शामिल तो रहे लेकिन पार्टी में उनकी स्थिति कभी सहज नहीं
रही। लाल कृष्ण आडवाणी की उन पर जरूर कृपा रही लेकिन संघ ने उन्हें कभी अपना नहीं
माना। यशवंत सिन्हा के मन में तो बहुत पहले से टीस थी। तब उन्होंने कुछ नहीं बोला।
लेकिन अब वे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कमर
कस कर मैदान में आ गये हैं। यशवंत सिन्हा ने अपनी किताब -'कन्फेशन्स ऑफ अ
स्वदेशी रिफॉर्मर' में जो दर्दे दिल बयां
किया है वो हैरान करने वाला है।
यशवंत सिन्हा एक IAS
अधिकारी थे लेकिन क्या वित्त मामलों के विशेषज्ञ भी थे ? यशवंत सिन्हा अपनी किताब 'कन्फेशन्स ऑफ अ
स्वदेशी रिफॉर्मर' में लिखा है कि उन्होंने
इनोमिक्स की पढ़ाई केवल 12वीं क्लास में की थी। बीए उन्होंने इतिहास से किया और एमए
पोलिटिकल साइंस से। पटना यूनिवर्सिटी में वे पोलिटिकल साइंस के शिक्षक भी रहे।
1990 में प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने जब यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्री बनने का प्रस्ताव
दिया तो वे पहले राजी नहीं हुए। वे विदेश मंत्री बनना चाहते थे। इसके पहले उन्हें
आर्थिक मामलों की कोई विशेष जानकारी नहीं थी। अनुभव के नाम पर जमा पूंजी ये थी कि
वे कुछ समय तक बिहार सरकार में वित्त विभाग के अंडर सेक्रेटरी रहे थे। लेकिन
चंद्रशेखर ने देश की आर्थिक हालत को देखते हुए यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्री ही
बनाया। उस समय खाड़ी युद्ध के कारण दुनिया भर के देश आर्थिक संकट का सामना कर रहे
थे। चंद्रशेखर को लगता था कि वे अपने प्रशासकीय अनुभव और कार्यकुशलता से सब कुछ
संभाल लेंगे।
1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की बहुमत वाली संविद
सरकार बनी तो यशवंत सिन्हा को फिर वित्त मंत्री बनाया गया। अटल बिहारी वाजपेयी
यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थे। वे तो जसवंत सिंह को यह
जिम्मवारी देना चाहते थे। लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी के कहने पर वाजपेयी ने यशवंत
सिन्हा को वित्त मंत्री बनाया था। वित्त मंत्री के रूप में यशवंत सिन्हा की राह आसान नहीं रही।
सुषमा स्वराज, यशवंत सिन्हा की आर्थिक नीतियों की सबसे मुखर आलोचक थीं। वे पार्टी पोरम पर होने वाली बैठकों में जम कर हमला बोलतीं। बजट पेश करने से पहले सिन्हा को आरएसएस के नीति निर्धारकों के साथ बैठक करनी पड़ती। यशवंत सिन्हा ने अपनी किताब में लिखा है कि आरएसएस के लोग उन पर भरोसा नहीं करते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में ही यशवंत सिन्हा को
पार्टी में भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। भाजपा के अंदर बढ़ते विरोध से वे
परेशान हो गये थे। एक दिन हताशा में वे पाजपेयी के पास पहुंचे और वित्त मंत्री के
पद से हटने की इच्छा जाहिर की। वाजपेयी ने उनकी बात नहीं मानी। लेकिन कुछ दिनों के
बाद संघ के दबाव में वाजपेयी ने यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्रालय से हटा कर विदेश
मंत्री बना दिया। जसवंत सिंह को नया वित्त मंत्री बनाया गया।
यशवंत सिन्हा आज आत्मसम्मान और पार्टी में आंतरिक
लोकतंत्र का मुद्दा उठा रहे हैं। लेकिन 17 साल पहले उन्होंने ये सवाल क्यों नहीं
खड़ा किया ? आरएसएस
उन्हें नापसंद करता था फिर भी वे 20 साल तक भाजपा में क्यों रहे ? वाजपेयी के खिलाफ वे क्यों नहीं बोले ? नरेन्द्र मोदी ने तो उनके साथ कुछ
गलत किया भी नहीं है। क्या नरेन्द्र मोदी
पर यशवंत सिन्हा का सियासी हमला, किसी
तय एजेंडा का हिस्सा है ?