Patna highcourt - न्यायिक अधिकारियों के कामकाज करने के तरीके पर हाईकोर्ट नाराज, दो जजों के काम को लेकर जारी कर दिया बड़ा आदेश
Patna highcourt - पटना हाईकोर्ट ने न्यायिक व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों पर नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने दो जजों के काम पर नाखुशी जाहिर करते हुए बड़ा आदेश जारी कर दिया है।
Patna - पटना हाईकोर्ट ने राज्य के न्यायिक अधिकारियों के काम काज करने के तरीके पर नाराजगी जताते हुए उन्हें प्रशिक्षण के लिए भेजने का आदेश दिया।कोर्ट ने कहा कि इन्हें आपराधिक मामले के बजाये सिविल और अपील को निपटारा करने में लगाया जाना चाहिए।
दो मामलों का दिया उदाहरण
जस्टिस विवेक चौधरी ने दो अलग अलग मामले पर सुनवाई के बाद न्यायिक अधिकारियों की ओर से जारी आदेश पर आश्चर्यव्यक्त करते हुए कहा कि इन अधिकारियों को आपराधिक कानून का ज्ञान नहीं है। इनको आपराधिक कानून के मूल सिद्धांतों को नहीं जानते और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के रूप में कर्तव्यों का निर्वहन करने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने इनकी सत्र शक्ति पर प्रतिबंध लगते हुये अगले छह माह तक न्यायिक कार्यों के बारे में जांच के अधीन रखने का आदेश दिया।
पहला मामला किशनगंज से सम्बंधित है।एससी/एसटी कोर्ट के स्पेशल जज,कुमार गुंजन के बारे में हाई कोर्ट ने कहा कि इन्हें आपराधिक कानून के मूल सिद्धांतों को नहीं जानते हैं। उन्हें किशनगंज के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की सत्र शक्ति पर प्रतिबंध लगते हुये केवल सिविल मामलों और अपीलों का निपटारा करने के लिए लगाया जाना चाहिए।
यही नहीं, कोर्ट ने अगले छह महीनों तक न्यायिक कार्यों के बारे में जांच करने का आदेश हाई कोर्ट प्रशासन को दिया।कोर्ट ने हाई कोर्ट महानिबंधक को इस आदेश के आलोक में कार्रवाई करने का आदेश दिया। दूसरे मामलें में,जो रोहतास जिला से सम्बन्धित है, पुलिस ने अभियुक्त को गिरफ़्तार कर अतिरिक्त जिला जज- 17 के समक्ष पेश किया।कोर्ट ने अभियुक्त को न्यायिक हिरासत में लेने से इंकार करते हुए उसे छोड़ दिया।
कोर्ट ने कहा कि किसी भी मजिस्ट्रेट या विशेष न्यायाधीश का प्राथमिक कर्तव्य यह है कि अभियुक्त को हिरासत में लेना है। इसके बाद, यदि जमानती अपराध से संबंधित है, तो उसे जमानत देने की स्वतंत्रता है। यदि गैर-जमानती अपराध से संबंधित है, तो उसे ज्यूडिशियल कस्टडी में लेते हुए रिमांड किया जाएगा, जब तक कि अभियुक्त की ओर से जमानत के लिए कोई जमानत अर्जी दायर नहीं की गई हो। यदि जमानत अर्जी दायर की जाती है, तो न्यायाधीश का यह कर्तव्य है कि वह कानून के अनुसार जमानत अर्जी का निपटारा करे और आवश्यक आदेश पारित करे।
लेकिन इस केस में, अभियुक्त को हिरासत में नहीं लिया गया।जबकि गैर-जमानती अपराध में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। कोर्ट ने कहा कि अतिरिक्त जिला न्यायाधीश 17 को दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय XI और अध्याय XXXIII के बारे में जानकारी नहीं है।
कोर्ट ने इन्हें पुलिस द्वारा जांच के प्रावधानों, जांच के दौरान मजिस्ट्रेट/विशेष न्यायाधीशों की शक्ति और जमानत से संबंधित प्रावधानों के संबंध में बिहार न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण लेने का आदेश दिया।
कोर्ट ने जांच अधिकारी को कानूनी के प्रावधानों के तहत एक बार फिर अभियुक्त को एससी/एसटी कोर्ट के विशेष न्यायाधीश के समक्ष पेश करने का आदेश दिया।वही विशेष न्यायाधीश को कानूनी के प्रावधानों का सख्ती से पालन करते हुए आदेश पारित करने का आदेश दिया।