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Education News: पटना के इस कॉलेज में शुरू हुआ मिथिला पेंटिंग का नया बैच, 53 छात्राएं लेंगी ट्रेनिंग

पटना के जेडी वीमेंस कॉलेज में मिथिला पेंटिंग का एक नया बैच शुरू हुआ है। यह कोर्स मां प्रेमा फाउंडेशन द्वारा संचालित किया जा रहा है।

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पटना के जेडी वीमेंस कॉलेज में मिथिला पेंटिंग का छह महीने का सर्टिफिकेट कोर्स सोमवार से आरंभ हो गया। मां प्रेमा फाउंडेशन द्वारा संचालित इस कोर्स का यह तीसरा बैच है। कॉलेज की प्राचार्या, प्रो. मीरा कुमारी ने बताया कि नये बैच की कक्षाएं शुरू हो चुकी हैं और छात्राओं को मिथिला पेंटिंग की कला की बारीकियों से परिचित कराया जाएगा।


मिथिला पेंटिंग का विविध प्रशिक्षण

छह महीने के इस सर्टिफिकेट कोर्स में छात्राओं को न केवल पेपर, जूट और कपड़ों पर पेंटिंग का प्रशिक्षण मिलेगा, बल्कि दीवारों पर भी मिथिला पेंटिंग करना सिखाया जाएगा। मां प्रेमा फाउंडेशन की ओर से इस प्रशिक्षण के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं छात्राओं को उपलब्ध कराई जा रही हैं। फाउंडेशन की सीईओ, ज्योति ने जानकारी दी कि इस बैच में 50 सीटें थीं, लेकिन छात्रों की विशेष मांग पर तीन अतिरिक्त सीटें बढ़ाई गईं। अब कुल 53 छात्राएं इस प्रशिक्षण में भाग ले रही हैं।


अनुभवी प्रशिक्षकों का मार्गदर्शन

इस बार प्रशिक्षण देने के लिए दो अनुभवी प्रशिक्षकों को नियुक्त किया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त नूतन दास और राज्य स्तर पर अवार्ड से सम्मानित दीपा कुमारी छात्राओं को मिथिला पेंटिंग की कला में पारंगत करेंगी। दोनों प्रशिक्षकों का अनुभव और कला में विशेषज्ञता, छात्राओं के लिए इस कोर्स को और अधिक उपयोगी बनाएगा।


पुराने बैच की छात्राओं को मिलेगा प्रमाण पत्र

प्राचार्या ने बताया कि अगले महीने पुराने बैच की छात्राओं को उनके कोर्स के पूरा होने पर प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे। यह प्रमाण पत्र उनके करियर में एक नई दिशा प्रदान करेगा और उन्हें मिथिला पेंटिंग को एक पेशेवर रूप में अपनाने का प्रोत्साहन देगा।


छात्राओं के लिए कला को रोजगार से जोड़ने का अवसर

इस सर्टिफिकेट कोर्स का उद्देश्य न केवल मिथिला पेंटिंग की परंपरा को जीवित रखना है, बल्कि छात्राओं को इसे रोजगार से जोड़ने के लिए प्रेरित करना भी है। इस तरह की कला पारंपरिक संस्कृति को आधुनिक व्यावसायिक संभावनाओं से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण कदम है। मिथिला पेंटिंग को लेकर छात्राओं का बढ़ता रुझान इस बात का प्रमाण है कि यह कला न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित कर रही है, बल्कि इसे एक नए आयाम तक पहुंचाने में भी सहायक है।

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