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BPSC कलंक कथा पार्ट 2: घोटाले के आरोपी को सरकार ने बनाया BPSC का चेयरमैन, 2 अध्यक्ष गए जेल, 245 छात्रों के कॉपी की कोडिंग ही बदल दी...

BPSC कलंक कथा पार्ट 2: BPSC कलंक कथा के पार्ट 2 में हम आपको बिहार लोक सेवा आयोग के 2 चेयरमैन के जेल जाने की कहानी को बताएंगे। बिहार में तब जमकर बवाल हुआ था और बीपीएससी उस वक्त अखबरों में सुर्खियों पर बना हुआ था।

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BPSC कलंक कथा पार्ट 2- फोटो : social media

BPSC कलंक कथा पार्ट 2: BPSC की कलंक कथा में आज आपको बतायेंगे कि कैसे बिहार लोक सेवा आयोग के पद पर रहते हुए आयोग के दो चेयरमैन को जेल जाना पड़ा था. तब बिहार में आरजेडी की सरकार थी. लालू प्रसाद की सरकार ने प्रदेश में इंजीनियरिंग एडमिशन घोटाले के आरोपी लक्ष्मी राय को बीपीएससी का चेयरमैन बना दिया था. सीबीआई इस पूरे प्रकरण की जांच कर रही थी. इसकी जांच जब आगे बढ़ी तो सीबीआई ने डॉ लक्ष्मी राय को बीपीएससी के चेयरमैन के पद रहते हुए गिरफ्तार कर लिया. बिहार में इस प्रकार की यह पहली घटना थी. इसके कारण बिहार में बवाल मच गया. विपक्ष इस पूरे मामले में सरकार को निशाने पर ले लिया. प्रतिदिन अखबारों में कुछ नए अपडेट आने लगे. इन सब के बीच जैसे जैसे जांच आगे बढ़ रही थी, डॉ लक्ष्मी राय के लिए संकट बढ़ता ही जा रहा था.यह घटना वर्ष 2000 की है. 

लालू ने बनाया था बीपीएससी का चेयरमैन 

लालू सरकार ने वर्ष 1997 के जनवरी में डॉ लक्ष्मी राय को बिहार लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया था. लालू प्रसाद की सरकार ने डॉ लक्षमी राय को तब बीपीएससी का अध्यक्ष बनाया जब उनके खिलाफ इंजीनियरिंग एडमिशन घोटला की जांच चल रहा था. वे इस मामले में आरोपी भी थे. लेकिन, लालू प्रसाद ने उनको बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद की कुर्सी सौंप दी थी. इसको लेकर भी विवाद हुआ था. लेकिन, सरकार इन सब के बावजूद उन्हों बीपीएससी के अध्यक्ष पद से नहीं हटायी.

इंजीनियरिंग एडमिशन घोटाला क्या था

वर्ष 1996 में  इंजीनियरिंग इंट्रेस टेस्ट हुआ था. डॉ लक्ष्मी राय जमशेदपुर रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसपल थे.उनको कॉपी कोडिंग का काम दिया गया था. उनपर आरोप लगा कि अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए उन्होंने 245 छात्रों के कॉपी की कोडिंग ही बदल दिया था. इस बात की भनक जब आम लोगों तक पहुंची तो जमकर बवाल हुआ. अखबारों मे भी इस बात को बहुत कुछ लिखा गया. विपक्ष सरकार को निशाने पर ले लिया. हंगामा जब बढ़ा तो इस पूरे मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को दे दिया गया. कुछ समय बाद इस इंजीनियरिंग एडमिशन घोटले की जाँच सीबीआई ने  शुरू कर दी . 

पद पर रहते हुए किए गए गिरफ्तार 

जांच के आंच बीपीएससी के चेयरमैन डॉ लक्षमी राय तक पहुंच गई और नवम्बर 2000 में सीबीआइ के द्वारा उनको पद पर रहते हुए गिरफ्तार कर लिया गया. इस पूरे कांड को मेधा घोटाला का नाम दिया गया.इस मामले की जांच जब और आगे बढ़ी तो बिहार के बाहुबली मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की भी संलिप्ता भी सामने आयी. सीबीआई ने उनको भी गिरफ्तार कर लिया. इसी मामले में गिरफ्तारी के बाद बृजबिहारी प्रसाद को अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. सीबीआई ने बृज बिहारी प्रसाद को गिरफ्तार करने के बाद उनको 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में लेकर जेल भेज दिया था. जहां उनकी हत्या कर दी गई.

अदालत के आदेश से फिर बने चेयरमैन

इधर, न्यायिक हिरासत में रहने के दौरान सीबीआइ के स्पेशल कोर्ट में लक्ष्मी राय के खिलाफ सुनवाई चलती रही.  कोर्ट ने फरवरी 2001 में इनकी जमानत अर्जी मंजूर करते हुए जेल से बेल पर रिहा कर दिया गया. जेल से भरा आने पर लक्ष्मी राय ने कोर्ट के सामने गुहार लगाई की जेल में रहने के दौरान  बीपीएससी चेयरमैन के अधिकार-कार्य वंचित कर दिए गए थे. अब  फिर से मुझे पद पर बहल किया जाए.पद पर बहाली की इनकी याचिका का केस लगभग 4 माह तक सुनवाई की प्रक्रिया में रहा. इसके बाद फिर कोर्ट के आदेश पर लक्ष्मी राय फिर से को 2 जुलाई 2001 को दुबारा बीपीएससी के चेयरमैन पद पर बहाल हो गए. इसके बाद जनवरी 2003 में चेयरमैन पद से रिटायर हुए.

एक और चेयरमैन गिरफ्तार

बीपीएससी के चेयरमैन लक्ष्मी राय की गिरफ़्तारी के बावजूद बीपीएससी के रवैया में कोई सुधार नहीं हुआ था. डॉ लक्ष्मी राय के बाद डॉ. रजिया तबस्सुम को बीपीएससी के कार्यवाहक अध्यक्ष बना गया. लेकिन, इसके कुछ दिनों के बाद डॉ. राम सिंहासन सिंह को जुलाई 2004 में बीपीएससी का नया चेयरमैन नियुक्त किए गए. यह काल भी लालू-राबड़ी का था. वर्ष 2003 में बिहार के कनीय कर्मचारियों को बिहार प्रशासनिक सेवा में अपग्रेड करने की खातिर बीपीएससी द्वारा सीमित प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित किया गया था. इसका मई 2004 में रिजल्ट आया. रिजल्ट जारी होने के बाद बवाल मच गया. आरोप लगा की 184 कैडिडेट को गलत तरीके से पैसा के दम पर बिहार प्रशासनिक सेवा में अपग्रेड कर दिए गए. बवाल और विरोध बढ़ने पर सरकार ने इसकी जांच निगरानी को सौंप दी. इसी दौरान बिहार में सत्ता बदला गई. बिहार में एनडीए की सरकार बन गई. 

नई सरकार के आदेश पर जांच में आई तेजी

नीतीश कुमार ने बिहार की कमान संभल ली.नई सरकार के आदेश पर निगरानी विभाग ने जाँच में तेजी आया. सबूत तलाशने की खातिर बीपीएससी के दफ्तर में दबिश बढ़ा दी गई. लेकिन बीपीएससी के कर्मचारियों द्वारा जांच में रोड़े अटकाए जाने लगे. निगरानी विभाग इसके बाद कोर्ट में अर्जी दिया कि पूरे मामले की जांच बिना बेरोकटोक चले इसके लिए गुहार लगाया. अदालत के आदेश के बाद बीपीएससी जांच में सहयोग को मजबूर हो गई. जांच में मिले साक्ष्यों के आधार पर  निगरानी विभाग की टीम ने दिसम्बर 2005 में बीपीएससी के चेयरमैन राम सिंहासन सिंह और 8 अन्य कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया. इन सभी पर 184 कैंडिडेट्स को गलत तरीके से बीपीएससी परीक्षा पास कराने क आरोप लगा और गिरफ्तारी के बाद सभी को निगरानी कोर्ट में पेश किया गया. जहाँ से इन सभी को जेल भेज दिया गया.

साथ में कुलदीप भारद्वाज की रिपोर्ट

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