Bihar News: मुजफ्फरपुर की आधी से अधिक महिलाएं में खून की भारी कमी! 15 से 19 वर्ष की 66 फीसदी लड़कियों में पाया गया मामला, रिपोर्ट में खुलासा
मुजफ्फरपुर की आधी से अधिक महिलाएं और 66% किशोरियां खून की कमी (एनीमिया) से जूझ रही हैं। जानिए कारण, सरकारी योजनाओं की स्थिति और जरूरी समाधान।

Muzaffarpur News: मुजफ्फरपुर में महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति पर हालिया रिपोर्टों ने एक बार फिर चिंता जताई है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के अनुसार, जिले की आधी से ज़्यादा महिलाएं एनीमिया की चपेट में हैं। विशेष रूप से 15 से 19 वर्ष की 66.1% किशोरियां खून की कमी से जूझ रही हैं।यह आंकड़ा साफ दर्शाता है कि युवतियों का पोषण स्तर बेहद कमजोर है। इसके पीछे प्रमुख कारण हैं:
पोषण की कमी
स्वास्थ्य जागरूकता का अभाव
स्कूल स्तर पर स्वास्थ्य जांच की कमी
सामाजिक व पारिवारिक लापरवाही
गर्भवती महिलाओं में भी गहराता संकट
गर्भवती महिलाओं के लिए एनीमिया का खतरा मातृ और शिशु मृत्यु दर बढ़ाने वाला कारक बन चुका है। 15 से 49 वर्ष की 61.7% महिलाएं गर्भावस्था के दौरान एनीमिक पाई गई हैं। इसके कई गंभीर प्रभाव हो सकते हैं, जैसे प्रसव के दौरान जटिलताएं, कम वजन वाले बच्चे का जन्म, प्रसव पूर्व मृत्यु का खतरा समेत माताओं में थकावट, बेहोशी, और संक्रमण का बढ़ता जोखिम देखा जा सकता है। हालांकि सरकारी स्तर पर आयरन फोलिक एसिड की गोली दी जाती है, लेकिन इनका वितरण और निगरानी कमजोर बनी हुई है।
हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर सेवाओं का बुरा हाल
मुजफ्फरपुर के 561 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों में से केवल 7 पर ही एनीमिया की जांच हो रही है, बाकी 554 केंद्र सेवाएं देने में विफल हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी हकीकत को उजागर करती है। इसमें कई मुख्य समस्याएं देखी गई है। जिलों के अस्पतालों में जांच उपकरणों की कमी, प्रशिक्षित स्टाफ का अभाव, कार्य में लापरवाही और रिपोर्टिंग और फॉलो-अप की घोर कमी देखी गई है। जिन केंद्रों में जांच नहीं हो रही, उन्हें "रेड जोन" में डाल दिया गया है। सिविल सर्जन ने सख्त निर्देश दिए हैं, लेकिन आम नागरिकों तक सुधार के संकेत नहीं पहुंच पाए हैं।
पिछले 5 सालों में एनीमिया का ट्रेंड
आयु वर्ग एनीमिया की दर (%)
6 से 59 महीने के बच्चे 64.6
15 से 49 वर्ष की महिलाएं 58.7
गर्भवती महिला (15-49 वर्ष) 61.7
15 से 19 वर्ष की लड़कियाँ 66.1
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि बीते पांच वर्षों में न सुधार हुआ, न ही स्थायीत्व आया। उल्टा स्थिति और बदतर होती गई है।
समाधान क्या हो सकता है?
अगर एनीमिया से लड़ना है, तो इसे केवल गोली और खानपान की गिनती से नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक जागरूकता से जोड़कर देखना होगा।
खून की कमी को रोकने के लिए जरूरी कदम
महिलाओं में खून की कमी को रोकने के लिए की तरह के जरूर कदम उठाने की जरूत है, जिसमें निम्नलिखित बातों का ध्यान देना चाहिए।
स्कूलों में नियमित स्वास्थ्य जांच और हीमोग्लोबिन टेस्ट अनिवार्य किया जाए।
पोषण युक्त मिड डे मील को और सशक्त किया जाए।
महिलाओं को आयरन युक्त भोजन जैसे हरी पत्तेदार सब्जियां, गुड़, चना, फल आदि की जानकारी दी जाए।
हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों पर हर महीने रिपोर्टिंग अनिवार्य की जाए।
बेटियों के लिए विशेष हेल्थ कैंप का आयोजन हो।
एनीमिया से लड़ने का समय अब है
मुजफ्फरपुर जैसे जिले में 66% किशोरियां और गर्भवती महिलाओं में खून की कमी होना एक स्वास्थ्य आपातकाल जैसा है। अब केवल योजनाओं की घोषणा से बात नहीं बनेगी, बल्कि ग्राम स्तर तक इनका क्रियान्वयन और निगरानी जरूरी है। यदि अब भी हम जागरूक नहीं हुए, तो अगली पीढ़ी को स्वस्थ जीवन देना बेहद मुश्किल होगा।