बिहार विधान सभा चुनाव के पहले शिवानंद तिवारी की बड़ी अपील, आपातकाल को याद कर इन नेताओं के खिलाफ खोला मोर्चा

लालू यादव की पार्टी राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने आपातकाल को याद कर आरएसएस को आड़े हाथों लेते हुए मौजूदा केंद्र सरकार की जमकर आलोचना की है।

Shivanand Tiwari
Shivanand Tiwari- फोटो : News4nation

Emergency : बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर एक ओर एनडीए और महागठबंधन अभी से जोरआजमाइश में लगे हैं। दूसरी ओर राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने आपातकाल को याद कर सोमवार को सत्ताधारियों पर बड़ा हमला बोला है। गौरतलब है कि 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी। उस समय को याद कर शिवानंद तिवारी ने आरएसएस के साथ ही मौजूदा मोदी सरकार के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की है। 


उन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, आज से पचास वर्ष पूर्व देश में इमरजेंसी लगी थी. आपातकाल आज़ाद भारत के इतिहास का एक काला अध्याय था. इसका बहाना जयप्रकाश आंदोलन को बनाया गया था. कहा गया था कि इस आंदोलन ने देश में अस्थिरता का माहौल बना दिया है. यह देश की एकता और अखंडता के लिए ख़तरा है. लेकिन सब इस सच्चाई से वाक़िफ़ थे कि इंदिरा जी ने अपनी सत्ता बचाने के लिए देश में आपातकाल लगाया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाजवादी नेता राजनारायण जी द्वारा दायर चुनाव याचिका पर फ़ैसला देते हुए इंदिरा जी के चुनाव को रद्द करते हुए उन्हें छह साल के लिये चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी उनको आंशिक राहत दी थी. इमरजेंसी लगाने का कारण वही था. 


यह भी एक सच्चाई है कि इमरजेंसी के विरोध में देश खड़ा नहीं हुआ. जयप्रकाश जी सहित देश और प्रदेश के तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया गया था. लेकिन देश में कोई हलचल नहीं हुई. जयप्रकाश आंदोलन का सबसे ज़्यादा लाभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े जनसंघ(भाजपा) , विद्यार्थी परिषद आदि संगठनों ने उठाया. क्योंकि उस आंदोलन में सबसे संगठित जमात वही थी. समाजवादी तो पतन की ओर मुख़ातिब थे. अपने को समाजवादी कहने वाले युवा सिर्फ़ हवाबाज़ी कर रहे थे.


जैसा कि ऊपर बताया गया है, देश के लोगों ने सर झुकाकर कर इमर्जेंसी को क़ुबूल कर लिया था. आंदोलन की सबसे संगठित जमात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसने आंदोलन की मलाई सबसे ज़्यादा खाई थी, उसने तो इमरजेंसी में इंदिरा जी के सामने अपना शीश नवा दिया था. इमरजेंसी घोषित होने के साथ ही सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित कई अन्य संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया था. तत्कालीन संघ प्रमुख बाला साहेब देवरस भी गिरफ़्तार कर लिए गए थे. इंदिरा जी ने इमरजेंसी के पक्ष में जनसमर्थन हासिल करने के लिए बीस सूत्री कार्यक्रम घोषित किया था. यह कार्यक्रम इमरजेंसी लगाये जाने के कुछ ही दिनों बाद घोषित किया गया था. इस कार्यक्रम के घोषित होते ही संघ प्रमुख देवरस जी ने इंदिरा जी को चिट्ठी लिखकर बीस सूत्री कार्यक्रम को समर्थन दे दिया. लाल क़िले से दिए गए उनके भाषण की भूरी भूरि प्रशंसा की. उन्होंने इंदिरा जी से संघ पर लगाए गये प्रतिबंध को हटाने का अनुरोध करते हुए उन्हें आश्वासन दिया कि संघ के कार्यकर्ता बीस सूत्री कार्यक्रम का प्रचार करेंगे. 


इमरजेंसी में जेलों में बंद लोगों में सबसे ज़्यादा माफ़ीनामा इन्हीं लोगों ने लिखा. पटना के फुलवारी शरीफ जेल में हमारे ही साथ बंद विद्यार्थी परिषद के तत्कालीन संगठन मंत्री ने लिखित दे दिया कि मैं आंदोलन में शामिल नहीं था. मुझे गलती से गिरफ़्तार कर लिया गया है.


यह निर्विवाद है कि भारतीय संविधान में आपातकाल लगाने की जो व्यवस्था है उसका दुरुपयोग किया गया. लेकिन अभी क्या हो रहा है ! देश में तनाव और भय का वातावरण बना हुआ है. जैसे फ़िल्मी बॉस अपने प्रतिद्वंद्वी को धमकाने और उसके मन में भय पैदा करने के लिए अपने गुर्गों को भेजता था उसी अंदाज़ा में  इडी, सीबीआई और इनकम टैक्स वालों को भेजा  जा रहा है . एक समुदाय विशेष के विरूद्ध प्रधानमंत्री सहित हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा नफ़रत फैलाया जा रहा है. देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की सरेआम घोषणा की जा रही है. जो गरीबों, वंचितों , आदिवासियों के बीच काम कर रहे हैं उन्हें अर्बन नक्सल कहा जा रहा है. 


अभी पाकिस्तान के साथ युद्ध में प्रधानमंत्री जी दो महिला फौजी पदाधिकारियों को देश के सामने ले आए. उनमें एक कर्नल रैंक की मुस्लिम महिला फौजी पदाधिकारी भी थीं. उनके विरुद्ध भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने बहुत ही अपमानजनक टिप्पणी की. और तो और देश के विदेश सचिव को तो गाली दी ही गई, उनकी बेटी तक को नहीं बख़्शा गया. इतना सब कुछ होने के बाद भी प्रधानमंत्री जी ने मुँह नहीं खोला. मोदी जी के नेतृत्व में देश  बहुत चिंताजनक स्थिति से गुजर रहा है. हमारा देश कोई एक परंपरा, एक रीति रिवाज या एक भाषा वाला देश नहीं है. आज़ादी के संघर्ष में यह देश एक सूत्र में बंधा. हिंदुत्व वादी उस महान संघर्ष के हिस्सा नहीं बने. बल्कि उस वक़्त भी ये अंग्रेजों की चाकरी में लगे हुए थे. इनको मालूम नहीं है विभिन्न भाषा भाषी और संस्कृति वाले देश को किस तरह एक सूत्र में बांधा गया था. आज उस सूत्र को तोड़ने का अभियान चल रहा है. अभी ही भाषा के सवाल पर तनाव दिखाई दे रहा है. कुल मिलाकर मोदी जी के नेतृत्व में देश चिंताजनक स्थिति से गुजर रहा है. इस सरकार से देश को मुक्ति दिलाना ही आज का आपद धर्म है. 

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