वोटर लिस्ट रिवीजन कराने पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, बिहार विधानसभा चुनाव के पहले क्यों, जानिए चुनाव आयोग को क्या कहा

वोटर लिस्ट रिवीजन कराने पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनाव आयोग से बड़ा सवाल किया. मुख्य रूप में विधानसभा चुनाव के पहले इस प्रकार के रिवीजन कराने पर टाइमिंग को लेकर बड़ा सवाल उठाया है.

revision of voter list
revision of voter list - फोटो : news4nation

Special Intensive Revision :  सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चुनावी सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के भारतीय चुनाव आयोग के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई शुरू कर दी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अब जबकि चुनाव कुछ ही महीनों दूर हैं, चुनाव आयोग कह रहा है कि वह 30 दिनों में पूरी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करेगा। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग आधार कार्ड पर विचार नहीं कर रहा और वे माता-पिता के दस्तावेज़ भी मांग रहे हैं। वकील ने कहा कि यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है।

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि उसने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया इतनी देर से क्यों शुरू की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इसे आगामी चुनाव से महीनों पहले ही शुरू कर देना चाहिए था। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पूरा देश आधार कार्ड के पीछे पागल हो रहा है और फिर चुनाव आयोग कहता है कि आधार नहीं लिया जाएगा। सिंघवी का दावा है कि यह पूरी तरह से नागरिकता की जाँच करने की प्रक्रिया है। 

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत के समक्ष जो मुद्दा है वह लोकतंत्र की जड़ और मतदान के अधिकार से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के मतदान करने के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय को भी चुनौती दे रहे हैं। 

मतदाता सूची से बाहर करने का इरादा नहीं

चुनाव आयोग के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका मतदाताओं से सीधा संबंध है और अगर मतदाता ही नहीं होंगे तो हमारा अस्तित्व ही नहीं है। आयोग किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने का न तो इरादा रखता है और न ही कर सकता है, जब तक कि आयोग को क़ानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए। हम धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते।