Holi 2025:दालान और गांव की चौपालों में बसंत पंचमी से होली गाने के शुरुआत होती. महाशिवरात्रि पर उठान आता और होली के दो-चार दिन पहले की शामें फाग, जोगीरा, होरी को चरम पर ले जाते. एक ऐसा त्योहार जो भगवान के सुमिरन से शुरू हो, श्रृंगार से रस में डूबे. विवाहित के दाम्पत्य डोर को मजबूती दे और विरह की वेदना को दर्शाए. ऐसे गीत जिनमें प्रभु से कामना भी है, किशोर और यौवन की हंसी-ठिठोली भी है, 'बुढ़वा' से भी मजाक है, रूठी प्रेयसी को मनाते पिया पियारे भी हैं और हर बरस का यह सुख बरकरार रहे यह कामना भी है.
हमारे बिहार में और खासकर हमारे मगध में होली गाने की शुरुआत होती है 'सुमिरहु श्री भगवान अरे लाला, सुमिरहु श्री भगवान' गाकर ... सबसे पहले सब देवी-देवता का स्मरण करते हुए गाया जाता है.
सुमिरहु श्री भगवान अरे लाला, सुमिरहु श्री भगवान
पुरुवे में सुमिरहु उगत सुरुज के, सुमिरहु श्री भगवन अरे लाला
जेहि सुमिरत सब काम बनतू है, पछिम में वीर सुल्तान अरे लाला,
उतर में सुमिरहु गंगा माता के, दक्षिण में वीर हनुमान उतरत
फिर 'बाबा हरिहर नाथ सोनपुर में खेले होली' एक रंग खेले बाबा हो विदेश्वर, एक रंग खेले भैरवनाथ, एक रंग खेले बाबा हो कपिलेश्वर, एक रंग खेले बाबा हो कुशेश्वर..... गाते हुए भगवान शिव के हर रूप को याद किया जाता है.
इसी तरह 'हनुमत लेके अबीर घुमत अयोध्या नगरिया' हो या 'गौरी पूजन जात कुमारी कनक भवन में' हो ये ऐसे गीत होते हैं जो आम लोगों को जिसमें एक ओर अपने आराध्य के प्रति समर्पण भी है तो दूसरी हो एक अविवाहित युवती की कामना भी है कि हे देवी पार्वती मुझे भी शिव के जैसा वर मिले.
'जहां बसे नंदलाल ए उधो पांती लेजा... कथिया बने रामा तोरा रे कगजबा, कथिया के बने मोतिझार ... ए उधो पांती लेजा... अंचरा के फाड़ी फाड़ी कोरा के कगजबा, अहे नैन बने मोतिझार ...' जैसे होली गीत स्तुति का अलग आनंद देते हैं.
सिया निकली अवधवा की और होलिया खेले राम लला,रामलला हो भगवान लला... लोक मानस में अयोध्या में होने वाली होली की वह प्रस्तुति है जिसमें सवाल और जवाब का लंबा सिलसिला होता है.
लेकिन होली केवल देवों के सुमिरन और उनके आनंद की स्तुति का पर्व तो है नहीं यह तो लोक के हर रूप को समाहित किए है. तभी तो एक नव विवाहित के मनोभाव को भी होली में उसी रूप में दर्शाया जाता है.तभी तो लोग गाते-
नीक लागे न मोहे नैहरबा, नीक लागे न मोहे नैहरबा...
सावन मास नैहर निक लागे,फागुन मास बालम कोरवा
नीक लागे न मोहे नैहरबा...
इसी तरह नव विवाहिता के लिए एक और गीत है ---
गोरिया कइके सिंगार, अँगना में पिसेली हरदिआ,
कहवा के हऊ राम सील सीलवटिया
कहवा के हरदी पुरान हो
गवाना कराई पिया घरे बइठला,
अपने ता गइल पिया पूरबी बनिजिया
और परदेश में पिया हो तो विवाहिता का दुःख भला होली में कई गुना बढ़ ही जाएगा. इसलिए तो होली गीतों में कहा गया है..
सईंया अवन शुभ शगुन बनतू है
आंगन बोलेल काग, अरे लाला,
जो सईंया अवन आज, अरे लाला
अगंना में उजरे ला काग
इसी तरह पति के वियोग में अपने घर में गुमसुम विवाहिता के भाव को प्रकट करता एक गीत है 'खंभवा धईले खाड़ कारण का बा ए गोरिया'...
और बिना श्रृंगार के होली होगा कैसे तो पति को बताते हुए विवाहिता कहती है. ..
चुड़िया लईह छोटे छोट, ए संइया नरमी कलाइयां
पटना सहरिया से हरी हरी चूड़िया, ए संइया, चुड़िया लईह छोटे छोट
वहीं पिया ना आयें तो वह श्रृंगार भी नहीं करेगी. इसलिए एक गीत में कहा गया है
कजरा ओहि दिन देब, कजरा ओहि दिन देब
जौन दिन मोर सइयां अइहे ...
वहीं काम के बोझ से थक चुकी प्रेयसी का प्यार से इनकार करने का मदहोश करने वाला तरीका जरा देखिए
अँखिया भइले लाले लाल एक नींद सुते द बलमुआ
चढ़त फगुनवा गवन ले अईला
मीठी मीठी बतिया में सुधिया हेराईला
टूटे लागल मोर पोरे पोर एक नीद सोये बलमुया...
कहते हैं कृष्ण होली के प्रतीक हैं .कृष्ण प्रेम के प्रतीक माने जाते हैं. कृष्ण रास और रंग के रूप हैं. ऐसे में जहां कृष्ण हैं वहां आनंद हैं. इसलिए होली के अंत में गाया जाता है
सदा आनंद रहे एहि द्वारे मोहन खेले होली हो
राम करे एक बेटवा होइहें, नाम पड़े गिरधारी हो
राम करे एक बिटिया होइहें , नाम राधिका प्यारी हो
प्रियदर्शन की रिपोर्ट