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BIHAR ASSEMBLY ELECTION2025: भाजपा का जदयू के साथ बने रहना जरूरी है या मजबूरी ? यूं ही नहीं बीजेपी की जरूरत बन गए हैं नीतीश कुमार

बिहार के सामाजिक और जातीय समीकरण अन्य राज्यों से अलग हैं। भाजपा ने यह महसूस किया है कि अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति अभी नहीं आई है। इसलिए...

 BIHAR ASSEMBLY ELECTION2025
यूं ही नहीं बीजेपी की जरूरत बन गए हैं नीतीश कुमार- फोटो : social Media

 BIHAR ASSEMBLY ELECTION2025:  दिल्ली विधानसभा चुनाव समाप्त होने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बिहार चुनाव की तैयारी आरंभ कर दी है। पार्टी ने इस बार नीतीश कुमार को पहले ही आश्वासन दिया है कि एनडीए उनके नेतृत्व में बिहार विदानसभा चुनाव लड़ा जाएगा।  भाजपा ने स्पष्ट किया है कि वह अपने सहयोगी दलों के साथ मजबूती से खड़ी रहेगी, भले ही वह अधिक सीटों पर चुनाव लड़े।

नीतीश कुमार को यह भलीभांति ज्ञात है कि राष्ट्रीय जनता दल के भीतर मुख्यमंत्री पद के लिए कोई रिक्ति नहीं है। जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को अगला मुख्यमंत्री बनाने की सार्वजनिक रूप से घोषणा की और फिर एनडीए के साथ गठबंधन कर लिया, उसके परिणामस्वरूप उनकी विश्वसनीयता लालू प्रसाद के दृष्टिकोण में कम हो गई है। जो थोड़ी बहुत कसर बची थी, वह भी इंडिया गठबंधन को बीच में छोड़ने के कारण समाप्त हो गई।

नीतीश कुमार का राजनीतिक इतिहास तो सबको पता है। उन्होंने कई बार दल बदले हैं, जो उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं। हालांकि, वर्तमान स्थिति में भाजपा को यह समझ में आ गया है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही  को मजबूती मिलेगी। भाजपा ने यह सुनिश्चित किया है कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद पर बनाए रखा जाएगा ताकि वे अपनी राजनीतिक स्थिरता बनाए रख सकें।

बिहार के सामाजिक और जातीय समीकरण अन्य राज्यों से अलग हैं। भाजपा ने यह महसूस किया है कि अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति अभी नहीं आई है। इसलिए, उसे छोटे भाई की भूमिका निभानी पड़ेगी जबकि नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका निभाएंगे। इस प्रकार, भाजपा ने एक मजबूत एनडीए के साथ चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है।

चार विधान सभा उप चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि भाजपा ने जदयू के सहयोग से दो विधान सभा सीटों पर विजय प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त, यदि हम बिहार विधान सभा चुनाव 2020 में विधायकों की संख्या पर ध्यान दें, तो भाजपा नीतीश कुमार के समर्थन से सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। 2015 के विधान सभा चुनाव में जब भाजपा ने जदयू से अलग होने का निर्णय लिया, तब उनके पास 53 विधायक थे, जबकि राजद के 80 और जदयू के 71 उम्मीदवारों ने चुनाव में जीत हासिल की थी।

राजनीत में गिव एंड टेक की नीति भाजपा और जदयू के बीच ही फलीभूत होती है। नीतीश कुमार अगर एनडीए की राजनीति में सीएम का पद बड़ी ही आसानी से पा लेते हैं तो नीतीश कुमार के कंधे पर सवार हो कर भाजपा बिहार में अपनी जड़े भी गहरी कर रही है।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीत को अपग्रेड करने की बात करें या विशिष्ट सम्मान की ही तो वह भाजपा के साथ ही रह कर संभव है। ऐसा इसलिए कि अभी केंद्र में भाजपा नीत सरकार पांच साल के लिए है। भविष्य में कभी राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति का चुनाव होगा तो संभव है कि नीतीश कुमार को एनडीए अपना उम्मीदवार बनाकर भाजपा के लिए बिहार में रास्ता बना सकती है। वहीं भाजपा के लिए जद(यू) और तेलुगुदेशम जैसे सहयोगियों का समर्थन आवश्यक है ताकि केंद्र सरकार की स्थिरता बनी रहे। यदि बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहते हैं, तो इससे केंद्र सरकार पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों में राजद, कांग्रेस और अन्य दलों द्वारा कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है। हालांकि, भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि हालिया सफलताओं के आधार पर बिहार भी उसी दिशा में बढ़ेगा। इसके लिे नीतीश का साथ जरुरी है।


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