Bihar Vidhansabha chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में तीन गठबंधनों की जंग में एनडीए ने मारी थी बाजी, महागठबंधन रहा पीछे, इस बार क्या होगा
Bihar Vidhansabha chunav 2025: साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव राज्य की सियासत में एक ऐतिहासिक मुक़ाबले के रूप में दर्ज हुआ।

Bihar Vidhansabha chunav 2025: साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव राज्य की सियासत में एक ऐतिहासिक मुक़ाबले के रूप में दर्ज हुआ। यह चुनाव न केवल गठबंधनों की परीक्षा थी, बल्कि राजनीतिक दलों के अस्तित्व और नेतृत्व की साख पर भी सवालों का इम्तिहान था। चुनावी रणभूमि में तीन बड़े गठबंधन आमने-सामने थे एनडीए, महागठबंधन और ग्रांड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट (जीडीएसएफ)।
एनडीए की ओर से जदयू, भाजपा, वीआईपी और हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) मैदान में थे।महागठबंधन की तरफ से राजद, कांग्रेस, भाकपा, भाकपा (माले) और सीपीएम ने मिलकर ताल ठोकी।वहीं तीसरे मोर्चे ग्रांड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट में रालोसपा, बसपा, एआईएमआईएम, समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक (एसजेडीडी), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) और जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) शामिल थे।
तीन चरणों में संपन्न हुए इस चुनाव में कुल 15 राजनीतिक दलों ने अपना दमखम दिखाया। एनडीए और महागठबंधन दोनों ने अपना खाता खोला, जबकि तीसरे मोर्चे के कई दलों की स्थिति बेहद ख़राब रही।
परिणामों की बात करें तो एनडीए ने 125 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया और नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक बार फिर सरकार बनाई।भाजपा: 74 सीटें,जदयू: 43 सीटें,हम (सेक्युलर): 4 सीटें,वीआईपी: 4 सीटें
दूसरी ओर, महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं और वह सत्ता से महज कुछ कदम दूर रह गया।
वहीं ग्रांड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट के खाते में मात्र 6 सीटें आईं इनमें एआईएमआईएम के 5 और बसपा के 1 विधायक शामिल थे।
दिलचस्प बात यह रही कि लोजपा ने इस बार किसी गठबंधन का हिस्सा बनने से इनकार किया और ‘एकला चलो रे’ की नीति पर चुनाव लड़ा। पार्टी को केवल एक सीट पर सफलता मिली। इसके अलावा एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी जीत दर्ज की।
हालांकि चुनाव के बाद राजनीतिक पटल पर दल-बदल का सिलसिला शुरू हो गया।बसपा और लोजपा के विधायक जदयू में शामिल हो गए।वीआईपी के विधायक भाजपा में चले गए।वहीं एआईएमआईएम के 5 में से 4 विधायक राजद में शामिल हो गए।
इस तरह 17वीं विधानसभा में एनडीए का दबदबा कायम रहा, जबकि महागठबंधन विपक्ष में बैठा। तीसरे मोर्चे यानी जीडीएसएफ की राजनीतिक जमीन कमजोर साबित हुई और उसका अस्तित्व लगभग सिमट गया।
2020 का यह चुनाव बिहार की सियासत में गठबंधन राजनीति, दल-बदल और नेतृत्व के समीकरणों का सबसे बड़ा सबक बनकर उभरा।