छठ महापर्व को लेकर द्वापरकालीन उलार्क सूर्य मंदिर में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़, जानिए क्या है मान्यता

PATNA : जिले के दुल्हिन बाजार थाने क्षेत्र के उल्लार धाम स्थित द्वापरकालीन पौराणिक उल्लार्क सूर्य मंदिर जोकि अब उल्लार सूर्य मंदिर के नाम से सुविख्यात होकर जाना जाता है। यह विश्व विख्यात बारह सूर्य पीठो एवं अर्क स्थलीयों में से एक है, जिसे उल्लार्क सूर्य मंदिर को अब उल्लारधाम सूर्य मंदिर भी कहते हैं। ऐतिहासिक साक्ष्यो के तौर पर कई पुस्तकों और ग्रंथो में इसका विवरण मौजूद है। मान्यता है की द्वापरयुग में जब भगवान श्रीकृष्ण के जाम्वती पुत्र राजा शाम्ब को दूर्वासा ऋषि के श्राप से पुरे शरीर में भयंकर कुष्ठ व्याधि हुई थी। जिससे मुक्ति के लिए साम्ब ने देश के 12 जगहों पर भव्य सूर्य मंदिर (12 सूर्य पीठो )का निर्माण करवाया था। जिसमें कोणार्क, मार्टड मंदिर, मढ़ोरा सूर्य मंदिर, कटारमल मंदिर, ब्राह्मणया देव सूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर ग्वालियर मध्य्प्रदेश,सूर्य नारायण मंदिर आंध्रा प्रदेश,लोलार्क, पंडार्क,ओगार्क देवार्क में से एक उल्लार्क सूर्य मंदिर है, जोकि तीसरा सबसे प्रमुख अर्क स्थली मंदिरो में एक माना जाता है।
सूर्य पुराण समेत कई ग्रंथो में वर्णित है की राजा शाम्ब को अपने रूप और सौंदर्य का बहुत अभिमान हो गया था। एक समय की बात है की वह हमेशा की भांति अपने कई सहचरों और सुंदर अप्सराओ (युवतियों ) के साथ एक सरोवर में जल विहार (स्नान )कर रहा था। उसी समय ऋषि दूर्वासा उसी रास्ते से अपने शिष्यों के साथ गुजर रहे थे। उन्हें देखने के बावजूद राजा शाम्ब ने अपने अहंकार और घमंड में चूर होने के कारण ऋषि दूर्वासा का अनादर करते हुए सरोवर में स्नान करने के दौरान ऋषि को देख तनिक भी शर्म नहीं किया। अपने शरीर को छुपाने की कोशिश नहीं किया और न ही ऋषि को सम्मान दिया।
रूप यौवन की नशे में चूर अहंकारी राजा शाम्ब द्वारा अपने इस तरह के अनादर से दुर्वासा ऋषि शाम्ब पर बेहद ही क्रोधित हो गए और उन्हें उसी समय तत्क्षण कुष्ठ व्याधि (कुष्ट रोग )का श्राप दे दिया। ऋषि दूर्वासा के श्राप से तत्काल उसी क्षण (समय )शाम्ब को क्षय रोग(कुष्ठ व्याधि )पुरे शरीर में हो गया। जिसकी वजह से उसकी हालत बहुत दयनीय हो गई। दिन प्रति दिन हालत खराब होने लगी। जिसके बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। जिसके बाद सांब अपने पिता श्रीकृष्ण के पास सलाह लेने के लिए गए। भगवान श्रीकृष्ण के सलाह के बाद वह दूर्वासा ऋषि के पास जाकर क्षमा याचना करते हुए अपने शरीर में लगे भयंकर कुष्ठ व्याधि से मुक्ति दिलाने के लिए उपाय बताने की लिए आग्रह किया। शाम्ब की ऋषि से बार बार क्षमा की आग्रह पर उन्होंने क्षमा करते हुए कुष्ठ व्याधि से मुक्ति के उपाय बताते हुए कहा की बारह विभिन्न अलग अलग जगहों पर बारह सूर्य मंदिर का निर्माण कर बारह वर्ष सूर्य उपासना करो। इसके बाद तुम्हें कुष्ठ व्याधि से मुक्ति मिल जाएगी। फिर तुम्हारा शरीर पहले जैसे कंचन हो जायेगा। कहते है ऋषि दूर्वासा के द्वारा बताए गए उपाय के बाद राजा शाम्ब ने वैसा ही किया। जिसके बाद बारह विभिन्न अलग अलग स्थलों पर भव्य सूर्य मंदिरो का निर्माण कर बारह वर्ष उन्ही स्थलों पर बारह वर्ष सूर्य उपासना किया। जिसके बाद राजा शाम्ब को भयंकर कुष्ठ व्याधि से मुक्ति मिल गई।फिर पुनः पहले जैसा शाम्ब की शरीर हो गया। उसके बाद से यहाँ सूर्य उपासना की परम्परा चली आ रही है।
उल्लार्क से उल्लार धाम का ऐतिहासिक सफर......
द्वापर कालीन पौराणिक इस उल्लार्क सूर्य मंदिर की अपनी एक अलग ही कहानी है। यहाँ की ऐतिहासिक महत्व और महता दिन प्रति दिन बढ़ती गई। समय बीतते गया कलयुग में यह उल्लार्क से अब उल्लार सूर्य उल्लार धाम बन गया। क्योंकि उल्लार गाँव में इसकी स्थापना हुई थी। इसलिए उल्लारधाम मध्य काल में बन गया। वहीं बीच के कालखंड में मुगल काल के दौरान इस द्वापर कालीन उल्लार्क सूर्य मंदिर को मुगल आक्रमणकारियों द्वारा इस मंदिर को कई बार कई ध्वस्त और विखंडित करने की कई पुस्तकों में चर्चा है। लेकिन यहाँ पर सूर्य उपासना की पूजा हमेशा चलती रही।
इसकी जीर्णोद्धार कब हुई...
बताया जाता है कि 19 वीं सदी के शुरुआत में लगभग 1920 के आसपास एक बहुत ही पहुँचे हुए संत अलबेला बाबा उलार गाँव पहुँचे। यहाँ वे एक कुटिया बना कर रहने लगे। उस समय सूर्य मंदिर काफ़ी जीर्ण शीर्ण अवस्था में था। उन्होंने ही उस दौरान वहाँ स्थानीय ग्रामीणों की सहयोग से मंदिर जीर्णोद्धार की बीड़ा उठाते हुए कई सालों की अथक मेहनत और आसपास के कई गावों के ग्रामीणों के शारीरिक और आर्थिक सहयोग से इस सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार करवा कर यहाँ की फिर से महता और इसकी महत्व को आगे बढ़ाते हुए उल्लार धाम को अत्याधुनिक युग में विश्व प्रसिद्ध करवाया। महान संत अलबेला बाबा को उल्लार सूर्य मंदिर का अत्याधुनिक निर्माता कहा जाता है। वे एक सिद्ध पुरुष एवं महान संत के रूप में विख्यात हुए. वे एक बार यहाँ आए तो यहीं के होकर रह गए. लेकिन कोई भी यह नहीं बताता की वे कहाँ से आए थे. वे अलौकिक शक्ति के सिद्ध पुरुष एक तपस्वी संत थे. उनकी आज तक इस क्षेत्र लोगों के बीच उनकी छवि और उनका व्यक्तित्व की यादें सभी की हृदय में एक नहीं भुलाने नहीं भूलने वाले स्मृति के रूप अदभुत रूप से विराजमान है। वहीं वर्तमान मठ महंथ बाबा अवध बिहारी दास ने अपने नब्बे और 21वी सदी में मंदिर के विकास कार्य और जीर्णोद्धार कार्य किया है। काफ़ी कार्य विकास के हुए है।
केंद्रीय पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग अधूरी है....
वहीं सिर्फ एक कमी रह गई। इस उल्लार धाम सूर्य नगरी को केंद्रीय पर्यटन स्थल सर्किट से जुड़ने मांग के रूप मान्यता मिलना बाकि है। जोकि काफ़ी पुरानी यहाँ की मांगे है। कई प्रयास भी किए गए। लेकिन केंद्र सरकार इसे नहीं मान्यता दे रही है।
उल्लार धाम की में छठ पूजा के लिए लाखों लोग क्यों आते है....
उल्लार धाम की ऐतिहासिक महत्व एवं यहां की महता के अनुसार मान्यता है की उल्लार धाम सूर्य मंदिर में जो भी भक्त अपने मन में इच्छा पूर्ति के लिए संतान प्राप्ति , अपने परिवार की सुख समृद्धि, निरोगी काया समेत मन जो भी आश की कामना के साथ इस आशा और उम्मीद के साथ आते है। उनकी सभी मनोवाक्षित मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस दरबार में कार्तिक और चैत्र मास में बड़े पैमाने पर लाखों की संख्या में छठ पूजा के लिए आते है। उनकी सभी मनोवांक्षित मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
ऐतिहासिक तालाब का विशेष महत्व क्या है......
उल्लार धाम सूर्य मंदिर परिसर में एक ऐतिहासिक बड़ा तलाब स्थित है। मंदिर से महज कुछ ही गज की दुरी पर स्थित इस तालाब में ही स्नान कर छठवर्ती भगवान भाष्कर की अस्तचलगामी(डूबते सूर्य )और उदयगामी (उगते सूर्य )की अर्घ्य देकर उपासना करते है। अर्घ्य देने के बाद सूर्य मंदिर में छठी मईया और भगवान भास्कर की स्थापित मूर्तियों की पूजा अर्चना करते है और अपने कामना पूर्ति की मन्नते मांगते है। ऐतिहासिक इस तालाब की अपनी एक अलग ही मान्यता है। सूर्य मंदिर मठ महंथ बाबा अवध बिहारी दास बताते है की कुष्ठ व्याधि से ग्रसित जो भी छठवर्ती भक्तों की द्वारा निरोगी काया के कामना लिए मनोकामनाएं मन लेकर आस्था और विश्वास के साथ सूर्य उपासना करते हुए इस तालाब में स्नान करने के उपरांत अर्घ्य देते है। उनकी कुष्ठ व्याधि दूर हो जाती है। निरोगी काया प्राप्त जल्द हो जाती है। यह विशेषता इस तालाब की है। साथ सभी तरह के शारीरिक कष्ट भी दूर हो जाते है। यह अटूट आस्था और विश्वास की परम्परा सदियों से चली आ रही है।
मन्नते पूरी होने पर नेटुआ की नाच की विशेष परम्परा
उल्लारधाम सूर्य मंदिर मठ महंत बताते हैं कि नि:संतान दंपति की संतान प्राप्ति की कामना की मन्नतें पूरी होने के बाद अटूट आस्था विश्वास के साथ मां अपनी गोद में पुत्र पुत्री को लेकर अपनी आंचल पर नेटुआ की नाच नाचवा कर अपनी मन्नते पूरी कर भगवान भाष्यकर की एक तौर आभार व्यक्त करते हुए उनकी शुक्रिया अदा करती है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही आज तक बरकरार है। इसकी भी अपनी एक अलग महत्व और यहाँ की विशेष पहचान बताई जाती है।
उल्लारधाम सूर्य मंदिर कैसे संचालित होती है....
यहाँ पर कार्तिक और चैत मास में छठ पूजा के लिए अनुमति रूप से लगभग चार से पांच लाख के आसपास छठवर्ती छठ पुजा के लिए अपार भीड़ उमड़ती है। जिसे नियंत्रित करना कठिन कार्य होता है। फिर भी बड़े ही आसानी से भगवान भास्कर की असीम अनुकम्पा और कृपा से यह कार्य सम्पन्न हर साल होते आया है। मठ प्रबंध समिति जिला और अनुमंडल प्रशासन की सहयोग से संचालन करती है। इसकी देखरेख के लिए एक संचालक कमिटी बनाई गई। जिसके अध्यक्ष पदेन SDM पालीगंज होते है। साथ ही एक सचिव और इसके संरक्षक मठ महंथ होते है। साथ ही इसके कार्यकारणी में कोषाध्यक्ष समेत दर्जनों सदस्य है. जोकि सूर्य मंदिर उल्लार धाम की देखरेख करते है।
छठवर्तियों के लिए क्या व्यवस्थाए रहती है...
छठपुजा के लिए आने वाले लाखों श्रद्धांलु भक्तों के लिए कई तरह की सुविधाओं की व्यवस्थाए जिला प्रशासन और मठ प्रबंधन समिति इंतजाम करती है। जिसमें कड़ी और चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था प्रमुख रूप से रहती है। चप्पे चप्पे महिला और पुरुष सुरक्षा कर्मियों की तैनाती रहती है। छठवर्तियों के ठहरने के लिए टेंट सिटी के निर्माण के साथ साथ, कपड़े बदलने के लिए चेंजिंग रूम, शौचालय , गहरे पानी नहीं जाने से बचने के लिए तालाब में बेर्केटिंग, SDRF की टीम वोट के लिए किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहती है। साथ ही किसी की अगर तबियत खराब होने की स्थिति में ईलाज के लिए चिकित्स्कों की टीम भी कैम्प में मौजूद रहती है। उल्लार धाम मेला परिसर की जो कि कई किलोमीटर की दुरी में फैला रहता है। सबकुछ Cctv कैमरे की निगरानी में रहता है।मेले परिसर की मॉनिटरिंग खुद SDM और DSP, BDO, एवं पुलिस पदाधिकारियों की बड़ी टीम करती है। साथ ही सूर्य मंदिर प्रबंधन समिति के सैंकड़ो भूलेंटियर सैंकड़ो की संख्या में मौजूद रहने वाले पुलिस कर्मियों के साथ सहयोग करते हुए बड़े ही अदभुत ढंग से छठपुजा को सम्पन्न कराते है। इसलिए यहाँ पर अबतक कोई भी छोटा -बड़ा हादसा या दुर्घटना घटित भगवान भास्कर और छठी मईया की कृपा से नहीं हुई है। यहाँ पर मठ प्रबंधन समिति के साथ साथ आसपास के गांवों उल्लार, अलीपुर, भलुआ, भारतपुरा, राकशियाँ, लाला भंसारा, दुल्हिन बजार, सोरंगपुर तक फैले मेले परिसर के विस्तार रहता है। जिसको नियंत्रित और संचालित करना अपने आप में एक बहुत बड़ा चुनौती भरा कार्य होता है। अटूट आस्था और विश्वास का प्रतीक लोक आस्था महान पर्व छठपुजा की अनोखी कहानी उल्लार धाम सूर्य मंदिर (उल्लार्क सूर्य )की है।कई किस्से कहानियाँ प्रचलित है, जोकि यहाँ की विशेष महत्व रखता है। सभी को एक सूत्र में बांधना भी एक बहुत बड़ा कठिन कार्य होता है। लेकिन छठपुजा में यह दृश्य अदभुत ढंग से यहाँ देखने को मिलता है।
पालीगंज से अमलेश की रिपोर्ट