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वैज्ञानिक उपायों के बजाय जैविक विविधता पर ध्याान दे सरकार : ग्रीन पीस

वैज्ञानिक उपायों के बजाय जैविक विविधता पर ध्याान दे सरकार : ग्रीन पीस

PATNA : राज्य में बढ़ती जैविक खेती के बीच किसी अवैज्ञानिक तकनीक को लागू करना किसानों को हतोत्साहित करना है। यह न सिर्फ स्वास्थ्य के लिहाज से बल्कि सरकार के खजाने पर भी भारी बोझ डालेगा। शोध बताते हैं  कि खाद्य विविधता से ही कुपोषण को खत्म किया जा सकता है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि मिड डे मिल और पीडीएस को और कारगर बनाया जाए। वह न सिर्फ नियमित हो बल्कि पौष्टिकता के पैमाने पर भी खरा उतरे। ये बातें हेम प्लाजा में शनिवार को आयोजित ग्रीनपीस इंडिया की तरफ से प्रेसवार्ता में सीनियर कैंपेनर इश्तियाक अहमद ने कही। 

उन्होंने कहा कि सरकार अभी फोर्टिफाइड चावल चलाने के पक्ष में है जो किसी भी रुप में कुपोषण को दूर नहीं करता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च आईसीएमआर से जब पूछा गया कि क्या उन्होंने फोर्टिफाइड खाने का लोगों पर ख़ासकर गर्भवती महिलाओंए नयी माताओंऔर पांच साल से कम उम्र के बच्चों कुपोषित और कमज़ोर बच्चों पर असर संबंधित कोई अध्ययन किया है। इस पर आईसीएमआर ने कहा कि उन्होंने इस संबंध में कोई अध्ययन नहीं किया है। आईसीएमआर ने एक ज़रूरी बात साझा की कि उन्होंने एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में 5 से 11 साल के बच्चों पर एक नियंत्रित अध्ययन किया था। बच्चों को मिड  मील के तहत फोर्टिफाइड चावल दिया गया था। अध्ययन के पाया गया कि फोर्टिफाइड चावल का एनीमिया की स्थिति में सुधार पर कोई खास असर नहीं है। बल्कि अगर मिड डे मील पोषक और नियमित हो तो वो भी एनीमिया और कुपोषण से लड़ने में कारगर है।

 वार्ता में ग्रीन पीस के रोहिण कुमार ने कहा कि जमुई के पांच गांवों में 187 महिलाओं के बीच हमने सर्वे किया जिसमें जैविक रुप से उपजाए खाद्य सामाग्रियों से उन्हें उचित पोषण मिला। यह भी उल्लेखनीय है कि बिहार सरकार के तीसरे कृषि रोडमैप के अंतर्गत जैविक भूमि में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है। 2016-17 में जो जैविक भूमि सौ हेक्टेयर ज़मीन थे। वह 2020- 21 में 21000 हेक्टेयर हो गई है। जब हमें जैविक खेती और उससे उपजी सामाग्रीयों से भरपूर लाभ मिल रहा है। ऐसे समय में चावल को फोर्टिफाइड कर उपयोग में लाना बनावटी पोषक तत्वों को शरीर में प्रविष्ट करा लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है।

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