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दो मुस्लिम गायकों से लता ने सीखी गायन कला और बन गई स्वर कोकिला, लता के पहले गुरु भी थे बेहद खास

दो मुस्लिम गायकों से लता ने सीखी गायन कला और बन गई स्वर कोकिला, लता के पहले गुरु भी थे बेहद खास

दिल्ली. स्वर कोकिला लता मंगेशकर के सुरों का सफर रविवार को हमेशा के लिए थम गया. 92 साल की उम्र में आखिरी साँस लेने वाली लता ने 13 साल की आयु से गाना शुरू किया था. उनके गायन के क्षेत्र में आने का वाकया सरल नहीं था. उन्होंने विषम परिस्थियों में गाना शुरू किया था. उनके जीवन के शुरुआती दौर गायन के लिए अनुकूल माहौल वाले नहीं रहे थे. हालाँकि प्रतिकूल परिस्थितियों को धता बताते हुए उन्होंने अपना गायन का सफर शुरू किया था. 

लता मंगेशकर को आज पूरी दुनिया अलविदा कह रही है. उनके जाने के बाद उनके सुर, लय, गीत, गायन की हर ओर चर्चा है. लेकिन लता को इस मुकाम पर पहुँचाने में जिन लोगों की अहम भूमिका रही उसमें उनके गुरुओं का अहम योगदान रहा. बाल काल से गायन के पेशेवर क्षेत्र में आने वाली लता मंगेशकर के पहले गुरु उनके पिता थे. लता ने अपने कुछ साक्षात्कार में इस बात का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर पहले पहल संगीत की शिक्षा दी. इस दौरान दीनानाथ अपनी बेटी की गायन कमियों को दूर करने के लिए बेहद संजीदा रहते थे. लता के अनुसार उनके पिता से उन्हें शुरुआत में कभी-कभी उनसे डाँट पड़ती थी. 

पिता से शुरुआती संगीत शिक्षा लेने के बाद लता के गायन को संवारने का जो सबसे अहम काम किया उसमें उनके दो मुस्लिम संगीत गुरुओं ने अहम भूमिका निभाई. लता दी ने कहा था कि उस्ताद अमानत अली ख़ान और फिर अमानत ख़ान जी से उन्होंने संगीत की बारीकियों को सीखा. संगीत की विविध विधाओं और आवाज के उतार चढ़ाव को उन्होंने दोनों गुरुओं से जाना. हालाँकि पिता की भांति इन दोनों गुरुओं से उन्हें डांट नहीं पड़ती थी. दोनों उन्हें समझाते और जो कमियों रहती उसे दूर करने का सुझाव देते. 

जीवन में कई उतार चढ़ाव देखने वाली लता ने शुरुआती दौर में शास्त्रीय संगीत गाया. बाद में उन्होंने फ़िल्मी दुनिया के लिए गाना शुरू किया और फिर फिल्मों की होकर रह गई. 75 साल से ज्यादा का फिल्म जगत के संगीत का सफर उन्होंने तय किया. 



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