सौदागर रोल में मांझी, डोल रहा है मन, क्या डूबायेंगे नीतीश की नाव

PATNA : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगामी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व विपक्षी एकता के अभियान पर निकल पड़े हैं. इसी बीच कर्नाटक विधानसभा चुनाव का परिणाम विपक्षी एकता की मुहीम को एक नए तेवर देने वाला साबित हुआ. कर्नाटक चुनाव परिणाम से उत्साहित विपक्ष इसे संजीवनी भी मान रहा है, लेकिन इस अभियान के सूत्रधार कहे जाने वाले नीतीश कुमार को महागठबंधन के एक घटक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने उनके लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है.
राजगीर में आयोजित हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय परिषद की बैठक में खुले मंच से जीतन राम मांझी ने जो बयान दिया है उसे लगता है कि वे डोल रहे हैं और नीतीश कुमार को लेकर उनका मूड बदल रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री ने नीतीश कुमार पर कई आरोप लगाते हुए अपने पुराने वादे को तोड़ने की चेतावनी दी है.
राजगीर में राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार के खिलाफ दबी जुबान में बगावत का ऐलान कर दिया. उन्होंने कहा कि नीतीश जी ने पहले ही मेरे साथ हकमारी कर चुके हैं. हम लोगों ने दो सीट की मांग की थी, लेकिन मंत्रिमंडल में एक ही सीट मिला. हमारे कार्यकर्ता कह रहे हैं कि हम वादा तोड़ भी सकते हैं.
जीतन राम मांझी ने कहा कि मैंने नीतीश कुमार के साथ रहने की कसम खाई है, लेकिन राजनीति में कोई भी कसम स्थायी नहीं होती. कार्यकर्ता मंत्रिमंडल में दो सीट की मांग कर रहे हैं और एक हिस्सा काटकर मंत्री पद मिलने से पार्टी को बहुत नुकसान हुआ है.
उन्होंने कहा कि लोकसभा में उनकी पार्टी को उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो पार्टी अकेले चुनाव लड़ने पर भी विचार कर सकती है. मांझी ने यह भी दावा किया है कि उनकी पार्टी बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की ताकत रखती है. पार्टी कार्यकर्ता इसके लिए तैयार भी हैं. लोकसभा चुनाव में हमें उचित प्रतिनिधित्व मिलना ही चाहिए.
जाहिर है पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपने बयानों से अक्सर नीतीश कुमार का टेंशन बढ़ाते रहते हैं. इससे पहले भी उन्होंने शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार की नीतियों का विरोध किया था. मुख्यमंत्री पद के लिए भी उन्होंने अपने बेटे का नाम आगे करते हुए कहा कि जिन लोगों का नाम 2025 के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है उन सबों की तुलना में मेरा बेटा सबसे योग्य है. उन्होंने कहा कि संतोष पढ़े लिखे हैं और जिनका नाम लिया जा रहा है उनको (तेजस्वी यादव ) वो पढ़ा सकते हैं. उन्होंने कहा कि दलित समाज को उचित प्रतिनिधित्व अभी तक नहीं मिला है. एक बार मौका मिला भी तो बीच में हटा दिया गया.
बताते चलें कि कुछ दिनों पूर्व जीतन राम मांझी ने भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. नीतीश के करीबी और विश्वासपात्र सहयोगी कहे जाने वाले मांझी का यह बयान से बिहार की सियासत में नई समीकरण गढ़ने की पहली पहल कही जा सकती है. उधर राज्य के मुख्य विरोधी दल भाजपा मांझी के बयान पर अपनी सहमती जता चुकी है और उनके बयान को आधार बनाकर बिहार की महागठबंधन सरकार को घेरने की कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहा है