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नवादा लोकसभा सीट समीकरण, चुनावी चौका लगाने की तैयारी में एनडीए, इंडी गठबंधन के लिए चुनौती, मतदान से पहले चर्चाओं ने पकड़ा जोर

नवादा लोकसभा सीट समीकरण, चुनावी चौका लगाने की तैयारी में एनडीए,  इंडी गठबंधन के लिए चुनौती, मतदान से पहले चर्चाओं ने पकड़ा जोर

 नवादा लोकसभा सीट से कांग्रेस ने अब तक सर्वाधिक छह बार बाजी मारी है। कुल 17 सांसद नवादा लोकसभा सीट से जीत दर्ज कर संसद भवन पहुंचे हैं, जिनमें से आरंभिक दौर में कांग्रेस का ही एकछत्र राज रहा। 1951 में कांग्रेस के बृजेश्वर प्रसाद, 1957 में कांग्रेस की ही सत्यभामा देवी, 1962 में कांग्रेस के ही रामधनी दास ने जीत दर्ज की थी जबकि इसके बाद जीत का सिलसिला भंग हो गया था। यह समय पूरी तरह से कांग्रेस का था लेकिन 1967 कांग्रेस के लिए बुरा अनुभव साबित हुआ था। 

1971 में एक बार फिर से कांग्रेस के सुखदेव प्रसाद वर्मा ने पुराने दिन लौटाने में सफलता पाई लेकिन इसे दोहराया नहीं जा सका और 1977 फिर से भारी पड़ गया। 1980 और 1984 में लगातार दो बार जीत का रिकॉर्ड बनाने वाले इकलौते उम्मीदवार कुंवर राम ने कांग्रेस की इज्जत ही नहीं बचाई बल्कि इतिहास पुरुष भी बन गए। इसके बाद से कांग्रेस एक अदद जीत के लिए तरसती ही रही है क्योंकि एक बार यह सिलसिला टूटा तो फिर कुंवर राम के बाद से कोई जीत कांग्रेस के खाते में नहीं गई। 

हालांकि बाद में चुनावी परिदृश्य भी बदलते चले गए और कांग्रेस सीट आवंटन के मामले में ही हाशिए पर चलती चली गई। कुंवर राम की जीत तक के बीच में दो बार ऐसे मौके आए हैं, जब कांग्रेस का विजय रथ रूक गया था। एक बार 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी महंत एमएसपीएन पुरी तो दूसरी बार 1977 में भारतीय लोकदल के प्रत्याशी नथुनी राम ने कांग्रेस प्रत्याशी को लगातार जीतने का रिकॉर्ड बनाने नहीं दिया था।

भाजपा ने चार बार जीत का बनाया है रिकॉर्ड नवादा लोकसभा सीट से सबसे अधिक बार जीत दर्ज करने के मामले में दूसरे नंबर पर भाजपा रही है, जिसने चार बार बाजी मारी है। 1996 में कामेश्वर पासवान ने भाजपा की जीत का सूत्रपात किया था हालांकि यह संघर्ष एक टर्म पूर्व से जारी था। इसके बाद चूकते-चूकते 1999 में भाजपा के डॉ संजय पासवान ने एक बार फिर से भाजपा के खाते में जीत डाली लेकिन दुर्भाग्य से वह इसे दोहरा नहीं सके और इस बार यह सीट 2004 में राजद के वीर चंद पासवान के खाते में चली गई।

 इससे पूर्व 1998 में भी यह सीट राजद की मालती देवी के खाते में थी यानी इस सम्मान को राजद के वीरचंद पासवान ने फिर से स्थापित किया था। इस प्रकार राजद ने दो बार ही सफलता का स्वाद चखा। इस समय तक की कालावधि में 1989 में माकपा के प्रेम प्रदीप और 1991 में माकपा के ही प्रेमचंद राम ने अपनी दखल दिखाई थी, जिसे निरंतर रख पाना संभव नहीं हो सका था। उल्लेखनीय है कि यह दौर कम्यूनिस्ट का चरमकाल था लेकिन दो बार से ज्यादा कुछ खास नहीं किया जा सका

 इसके बाद से यह सीट एक बार फिर से सामान्य हो गया और तब से 2009 में भाजपा के भोला सिंह तथा 2014 में भाजपा के ही गिरिराज सिंह भाजपा की शानदार वापसी कराई। हालांकि 2019 में यह सीट शेयरिंग के नए गणित के कारण एनडीए के साथी दल लोजपा के खाते में चली गई लेकिन चंदन सिंह लाज बचाने में सफलता पाई। इस बार 2024 में यह सीट एक बार फिर से एनडीए के प्रमुख घटक दल भाजपा के खाते में है। वर्तमान में राजनीतिक प्रेक्षकों की निगाह इस बात पर टिकी है कि भाजपा यानी एनडीए जीत का सिलसिला आगे बढ़ा पाती है और मोदी मैजिक का लाभ ले पाती है अथवा यह राह दुरूह साबित होती है जबकि यह भी चर्चा जारी है कि राजद अपनी प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित करने में सफल होगी अथवा यह राह कठिन ही साबित होगी।

रिपोर्ट- अमन कुमार

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