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एक अन्ने मार्ग नहीं ओशो के आश्रम में होते नीतीश कुमार, पढ़िए सीएम नीतीश के राजनीति में इंट्री की इनसाइड स्टोरी

एक अन्ने मार्ग नहीं ओशो के आश्रम में होते नीतीश कुमार, पढ़िए सीएम नीतीश के राजनीति में इंट्री की इनसाइड स्टोरी

PATNA : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आज देश की राजनीति में एक कद्दावर नेता के रूप में हो चुकी है। पिछले 18 सालों से वे बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं। इसके पहले भी केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। राजनीति में आने के पहले नीतीश कुमार जेपी आन्दोलन में भी अहम भूमिका का निर्वहन कर चुके थे। हालाँकि उनके राजनीति की राह पकड़ने की भी अपनी कहानी है। 

दरअसल नीतीश कुमार पटना के इंजीनियरिंग कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सेना में जाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने प्रयास भी किया। लेकिन अंतिम दौर में सेना में उनका सेलेक्शन नहीं हो पाया। पेशे से इंजीनियर और नीतीश कुमार के दोस्त रहे डॉ उदय कांत अपनी किताब'नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नज़र से में लिखते हैं की सेना में नौकरी नहीं मिलने के बाद नीतीश राजनीति में आने की ठान चुके थे। लेकिन इसके पहले वे घुमने के लिए बम्बई चले गए। 

उदय कांत इस कहानी को आगे बढ़ाते हुए स्वामी आनंद अरुण की किताब'इन वंडर विद् ओशो'का रिफ़रेंस देते हैं। स्वामी अपनी किताब में कहते हैं कि मैं नीतीश के साथ पंढ़र रोड स्थित वुडलैंड्स अपार्टमेंट्स में रह रहे भगवान रजनीश से मिलने चला गया।  पहले तो मुझे बिना किसी पूर्व सूचना के उनके शयनकक्ष तक जाने की अनुमति थी। लेकिन हमने पाया कि अब भगवान से मुलाक़ात का मैनेजमेंट पूरी तरह से बदल गया है। हमने प्रार्थना करते हुए भगवान के पास पुर्जा भिजवाया और फिर जवाब आया कि, ‘अगर मैं अकेला उनसे मिलना चाहूं, तो अगली सुबह आऊं लेकिन अगर मुझे अपने दोस्त को भी साथ लाना है, तो अगली शाम आऊं।’ 

हालाँकि नीतीश के लिए बम्बई में केवल दो ही आकर्षण के प्रमुख केंद्र थे। जिसमें जार्ज फर्नांडिस और ओशो शामिल थे। ओशो से मुलाकात नहीं होने के बाद नीतीश ने जार्ज फर्नांडिस से मिलने का मन बना लिया। फर्नांडिस से मुलाकात नीतीश के जीवन में निर्णायक रहा। उन्होंने राजनीती की राह पकड़ी। जिसपर आजतक वे सरपट दौड़ रहे हैं।  


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