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नीतीश के सपनों पर फिरा पानी , एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में खिला कमल ,तेलंगाना में कांग्रेस आगे, जदयू का जमानत बचाना हुआ मुश्कील...

नीतीश के सपनों पर फिरा पानी , एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़  में खिला कमल  ,तेलंगाना में कांग्रेस आगे, जदयू का जमानत बचाना हुआ मुश्कील...

DELHI-एक समय था, जब नीतीश को पीएम मैटेरियल के तौर पर पर देखा जाता था. 2014 से पहले जिस वक्त नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जा रहा था कि उस वक्त नीतीश कुमार ने उनका विरोध करते हुए कहा था कि देश का प्रधानमंत्री धर्म-निरपेक्ष और उदारवादी होना चाहिए. नीतीश कुमार कह चुके हैं कि उनके लिए बस अब एक ही पद पर बैठना रह गया. हाल ही में नीतीश की पार्टी से अलग हुए आरसीपी सिंह ने नाराज़गी में कहा कि नीतीश कुमार कभी पीएम नहीं बन सकते…सात जन्म में भी नहीं.

पूरे देश में विपक्षी दलों को एक मंच इंडी गठबंधन के तहत लाने की कोशिश उनके कारण ही सफल हुई. लेकिन चुनावी राजनीति में नीतीश कुमार के राष्ट्रीय नेता बनने का सपना एक बार फिर बिखरता दिख रहा है तो कारण भी है. पांच राज्यों के चुनाव में  नीतीश की पार्टी जदयू ने मध्य प्रदेश में भी किस्मत आजमाई थी. 10 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए थे लेकिन नौ सीटों पर  चुनाव लड़ी. लेकिन चुनाव परिणाम से साबित हो रहा है कि जदयू के सभी उम्मीदवार फिसड्‌डी साबित हुए.  सिर्फ थंडला ही एक सीट रही, जहां जदयू को कुछ वोट मिल सके हैं, मध्यप्रदेश में जदयू को दहाई से सौकड़ा में  वोट मिले हैं .

अभी तक के मतगणना के अनुसार बालाघाट  के जदयू प्रत्याशी को  26 वोट मिले हैं तो गोटेगांव से जदयू प्रत्याशी को  95 वोट मिले हैं वहीं बहोरीबंद से के जदयू प्रत्याशी को  71 वोट मिले हैं तो  जबलपुर उत्तर जो समाजवादी और कभी नीतीश के सहकर्मी रहे शरद यादव का क्षेत्र है में महज 161 वोट मिले हैं. पिछोरे की बात करें तो यहां जदयू प्रत्याशी को मात्र 45 मत से संतोष करना पड़ा है. वहीं राजनगर से जदयू प्रत्याशी को 119 वोट मिले हैं. विजयराघवगढ़ विधान सभा के  21 मतदाताओं ने जदयू को समर्छन दिया है तो थंडला  विधानसभा क्षेत्र में जदयू के उम्मीदवार को 1445 वोट मिले हैं. बात करें पेटलावद विधानसभा की तो यहा से जदयू उम्मीदवार को  472 वोट से संतोष करना पड़ा है.

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए इन राज्यों के परिणामों को एक तरह से सेमीफ़ाइनल के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन एमपी में जदयू को मिले वोट के बाद राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले....

बहरहाल चार राज्यों के मतगणना के परिणाम ने नीतीश के सपनों को पूरा नहीं किया है.अगर नीतीश पीएम बनने का सपना देख रहे हों तो यह मुश्किल है क्योंकि इस वक्त विपक्ष को जोड़ने वाले तत्व नदारद हैं. आज हरकिशन सिंह सुरजीत जैसे लोग भी कहां हैं, जिन्होंने वीपी सिंह की सरकार के लिए एक साथ माकपा और बीजेपी का समर्थन जुटाया था. बड़ा सवाल है कि आज विपक्ष को एक साथ लाएगा कौन? क्योंकि विपक्ष के बड़े चेहरे ममता और केजरीवाल अपनी-अपनी राह चल रहे हैं.'' राजनीतिक पंडितों के ्नुसार नीतीश की पार्टी का ना तो अखिल भारतीय संगठन है और ना उनमें एक-दो से ज्यादा राज्यों में चुनाव जीतने की क्षमता है. ऐसे में विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर पर नीतीश की दावेदारी काफी कमज़ोर लगती है. 


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