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: सता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी
की सरकार लगातार कई उपचुनाव हार चुकी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 282
सीटें जीती थीं। 31 मई 2018 को अब लोकसभा में बीजेपी के 273 सदस्य रह गये हैं।
सुमित्रा महाजन लोकसभा अध्यक्ष हैं इस लिए उनकी गिनती इसमें शामिल नहीं हैं।
बीजेपी के पास अभी भी बहुमत है । सहयोगी दलों के 12 सांसदों का समर्थन हासिल है।
लेकिन जिस तरह से उसकी सीटें कम हुई हैं उससे लगता है कि नरेन्द्र मोदी को 2019
में बहुत मेहनत करनी होगी। उपचुनावों में बीजेपी
की हार का मतलब है जनता मोदी सरकार से खुश नहीं है।
नरेन्द्र मोदी को अब
नये सिरे से सोचना होगा। अभी तक लोकसभा के 13 उपचुनाव हुए हैं जिसमें बीजेपी को 8
में हार का सामना करना पड़ा है। इस हार में एक बात साफ दिख रही है जब बीजेपी के
खिलाफ विपक्षी दल एकजुट हो कर चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें कामयाबी मिल जाती है।
कैराना लोकसभा उप चुनाव में बीजेपी अपनी विनिंग सीट को नहीं बचा सकी। यहां रालोद
को सपा, कांग्रेस और बसपा ने समर्थन दिया था। इसी तरह गोरखपुर और फुलपुर में जब
सपा, बसपा और कांग्रेस ने मिल कर उपचुनाव लड़ा तो बीजेपी अपनी जीती हुई सीट पर हार
गयी।
बीजेपी का अपने सहयोगी
से भी बहुत अच्छा रिश्ता नहीं है। शिवसेना, बीजेपी से नाराज चल रही है। चंद्रबाबू
नायडू अलग हो चुके हैं। बिहार में सहयोगी नीतीश कुमार भी नाखुश चल रहे हैं। उपेन्द्र
कुशवाहा समय समय पर मोदी सरकार को चुनौती देते रहे हैं। अगर समय रहते बीजेपी ने
अपनी राजनीति का फिर से मूल्यांकन नहीं किया तो उसकी सत्ता बिखर सकती है।