PATNA : बिहार के मिनी चित्तौड़गढ़ के नाम से जाने जाने वाला औरंगाबाद लोकसभा सीट के साथ एक रिकॉर्ड जुड़ा हुआ है जो 1952 से लेकर अब तक बरकरार है। 1952 से अबतक यहां सिर्फ राजपूत जाति के उम्मीदवार ही विजयी हो सके हैं। यहां के पहले सांसद सत्येंद्र नारायण सिन्हा राजपूत जाति से थे, जो बाद में बिहार के मुख्यमंत्री भी बने थे। कभी कांग्रेस के गढ़ के रूप में जाने जा रहे औरंगाबाद सीट पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है और रामनरेश सिंह उर्फ लूटन सिंह के पुत्र सुशील कुमार सिंह सांसद हैं।
सांसद सुशील कुमार सिंह 1998 में समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और वीरेंद्र कुमार सिंह को पराजित किया। वर्ष 2014 में भाजपा और जदयू के अलग होने के बाद सुशील सिंह जदयू छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस उम्मीदवार निखिल कुमार को 66347 वोटों से हराया था।
निखिल कुमार की नाराजगी का पड़ेगा असर
इस बार भी सुशील कुमार सिंह भाजपा उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार उनका मुकाबला हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रत्याशी उपेन्द्र प्रसाद से होने जा रहा है। कांग्रेस के कद्दावर नेता निखिल कुमार इस बार भी कांग्रेस टिकट के दावेदार थे लेकिन महागठबंधन में सीट हम के पास चली गई। जिसको लेकर निखिल कुमार ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। निखिल कुमार ने लालू यादव पर अपना टिकट कटवाने का आरोप लगाया है। निखिल कुमार को टिकट नहीं मिलने को लेकर राजपूत समाज में नाराजगी देखी जा रही है। औरंगाबाद के राजपूतों ने पटना के कांग्रेस दफ्तर पर इसके विरोध में खुलकर प्रदर्शन भी किया। कांग्रेस नेताओं पर पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप भी लगाया।
औरंगाबाद में राजपूतों का दबदबा
औरगाबाद में राजपूत वोटरों की संख्या सबसे अधिक है। दूसरे स्थान पर यादव वोटरों की संख्या 9 प्रतिशत है। मुस्लिम वोटर 8 प्रतिशत, कुशवाहा 8 प्रतिशत और भूमिहार वोटरों की संख्या 7 प्रतिशत है। एससी और महादलित वोटरों की संख्या इस लोकसभा क्षेत्र में 17 प्रतिशत है।
बताया जा रहा है निखिल कुमार के टिकट कटने का भी इस बार व्यापक असर चुनाव में देखने को मिलेगा। राजपूतों के साथ ही एनडीए से जुडें समाज के विभिन्न तबकों का समर्थन इस बार सुशील कुमार सिंह को मिल सकता है। सुशील कुमार सिंह ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार द्वारा समाज के सभी तबकों के लिए किए गए कार्यों का लाभ उन्हें चुनाव में मिलेगा। जानकारों की माने तो इसबार सुशील कुमार सिंह की राह पिछले बार की तुलना में आसान दिख रही है।