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जदयू के कुनबे को संभालने में क्यों असफल हैं नीतीश कुमार, अरुणाचल-मणिपुर के झटके से नेतृत्व की कुशलता पर उठा सवाल

जदयू के कुनबे को संभालने में क्यों असफल हैं नीतीश कुमार, अरुणाचल-मणिपुर के झटके से नेतृत्व की कुशलता पर उठा सवाल

पटना. पहले अरुणाचल प्रदेश और अब मणिपुर लगातार दो राज्यों में नीतीश का ‘तीर’ उन्हें ही घायल कर चुका है. मणिपुर में जदयू के 6 में से 5 विधायकों के भाजपा में शामिल होने की खबरों ने नीतीश कुमार के बिहार में नई सरकार बनाने के जश्न को फीका कर दिया है. नीतीश के नेतृत्व में 3 और 4 सितम्बर को पटना में जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही है. लेकिन उस बैठक के पूर्व जदयू को लगे इस झटके ने रंग में भंग डालने का काम कर दिया. ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि जदयू बिहार के बाहर अपने कुनबे को क्यों नहीं संभाल पा रहा है. क्या ये झटके जदयू के नेतृत्व की कुशलता पर सवाल नहीं है? भाजपा से दो दो हाथ करने का दंभ भर रही जदयू जब अपना ही घर नहीं संभाल पा रही तो राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को वे कैसे चुनौती देंगे. 

दरअसल, बिहार में भले जदयू मजबूती के साथ भाजपा को चुनौती देने की बात करती है. लेकिन अन्य प्रदेशों में यह आसन नहीं है. यहां तक कि जदयू को अभी ही कठिन डगर के संकेत का पता चल गया होगा. अरुणाचल प्रदेश में वर्ष 2020 में ही जदयू के 7 में से 6 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया. एकमात्र शेष बचे जदयू विधायक तेकी कासो ने पिछले महीने ही भाजपा में शामिल होने की घोषणा कर दी. इसके अलावा अरुणाचल में जदयू के 9 में से 8 कोर्पोरेटर भी भाजपा में चले गए हैं. वहां पहले ही जिला परिषद के 18 जदयू सदस्यों में से 17 भाजपा में चले गए थे. यहां तक कि ग्राम पंचायत सदस्यों में 119 पर जदयू को जीत मिली थी लेकिन अब तक 100 से ज्यादा जदयू छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं. वहीं अब मणिपुर में जदयू के 6 में से 5 विधायक भाजपा में चले गए. 

मणिपुर में कैसे मजबूत हुई जदयू : मणिपुर में जदयू से भाजपा में जाने वाले विधायकों में जॉयकिसन सिंह, नगुरसंगलुर सनाटे, अचब उद्दीन, थंगजाम अरुण कुमार और एलएम खौटे हैं. इनमें खौटे और अरुणकुमार ने विधानसभा चुनाव के समय पहले भाजपा से चुनाव लड़ने की मांग की थी, लेकिन पार्टी द्वारा ठुकराए जाने के बाद वे जदयू में शामिल हो गए. इसी तरह चुनाव से ठीक पहले जॉयकिसन जद (यू) में शामिल हो गए थे. 2017 में जॉयकिसन ने भाजपा से कांग्रेस में प्रवेश किया. चुनाव से पहले वह कांग्रेस से निलंबन के बाद जद (यू) में शामिल हो गए और विधायक बन गए. लेकिन अब ये सब जदयू को छोड़ भाजपा में चले गए हैं. 


एनडीए छोड़ते ही दो झटके: नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने के बाद जदयू को लगा यह दूसरा बड़ा झटका है. इसके पहले अरुणाचल प्रदेश में भी जदयू के एक मात्र विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं. इससे भाजपा ने एक प्रकार से नीतीश कुमार को स्पष्ट संदेश भी दे दिया है कि लोकसभा चुनाव 2024 में जदयू की राह आसान नहीं होगी. दरअसल, एनडीए से अलग होने के बाद जदयू ने साफ तौर पर कहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केंद्र में आने से रोकना उनका एकमात्र मकसद है. लेकिन इस मकसद के पहले जदयू के लिए अपना घर सुरक्षित रखना ही बड़ी चुनौती बन गई है. 

बिहार के बाहर कम जनाधार : इतना ही नहीं बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड में भी जदयू का कोई खास जनाधार नहीं दिखा था. 3 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड में जीत का निशाना नीतीश का 'तीर' नहीं साध सका थे. 81 में से 40 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी नीतीश शून्य पर आउट हो गए थे. हाल में ही उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जदयू को करारी हार मिली थी. 

भाजपा से मिली रणनीतिक हार : एक प्रकार से यह दर्शाता है कि नीतीश कुमार बिहार से बाहर इतनी आसानी से अपनी पैठ नहीं बना सकेंगे. झारखंड और उत्तर प्रदेश इसका उदाहरण है. वहीं मणिपुर और अरुणाचल में जदयू का कुनबा बिखडना पार्टी नेतृत्व की रणनीतिक रूप से कमजोर पकड़ को भी दर्शाता है. यह सीएम नीतीश और पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह की रणनीतिक हार ही है वे अपने ही लोगों को अपने साथ नहीं रख पाए. इस स्थिति में नीतीश कुमार वर्ष 2024 में खुद की जमीन को कैसे मजबूत कर सकेंगे यह बड़ा सवाल है.


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