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धर्म बनाम जाति, पांच राज्यों के चुनाव में सरकारों’ को कोसने से लेकर विरोधी को नीचा दिखाने की चल रही स्पर्धा, रेवड़ियां बांटने में भी कोई दल नहीं है पीछे

धर्म बनाम जाति, पांच राज्यों के चुनाव में  सरकारों’ को कोसने से लेकर विरोधी को नीचा दिखाने की चल रही स्पर्धा, रेवड़ियां बांटने में भी कोई दल नहीं है पीछे

डेस्क -  हमारा देश ‘चुनावी मोड’ पर है, पांच राज्यों में हो रहे चुनाव को लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल की बाकायदा घोषणा की जा रही है. पांच राज्यों में चुनाव का शंखनाद हो चुका है. दिसंबर तक पांच राज्यों में नयी सरकारें भी बन ही जाएंगी. तो 2024 के लोकसभा चुनाव का बिगुल भी बज गया है.अब सवाल यह नहीं है कि कौन जीतेगा या कौन हारेगा, सवाल यह है कि इन चुनाव के बाद हमारा जनतंत्र कुछ मज़बूत होगा या कमजोर?

विपक्षी गठबंधन केंद्र सरकार को घेरने के लिए ओबीसी के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाएगा और यह 2024 के चुनावों में बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति को मात देने में एक हथियार की तरह काम आएगा.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मुद्दे पर विपक्षी गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का बिहार में आरजेडी, जेडीयू और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ पूरी तरह से तालमेल है.बिहार में ओबीसी की बड़ी आबादी ने कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' की दूसरी पार्टियों को बीजेपी के आक्रामक रूप से ओबीसी कार्ड इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया है.

मौजूदा समय में अगर बिहार के सत्तारूढ़ गठबंधन की बात करें तो इसमें जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस के साथ वाम पार्टियां भी शामिल हैं. यही वजह है कि विपक्षी गठबंधन को ये लग रहा है कि कम से कम बिहार के अंदर तो आम चुनावों में बीजेपी का सफाया किया जा सकता है. छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की सरकार है. मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सरकार चला रही है. तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (पूर्व में तेलंगाना राष्ट्र समिति या टीआरएस) की सरकार है. वहीं मिज़ोरम में मिज़ो नेशनल फ्रंट की सरकार है. 

चुनावी बिसात पर सजे मोहरे बता रहे हैं कि सारा ज़ोर येन-केन-प्रकारेण चुनावी मुकाबला जीतने का है. जनता के शासन का नाम जनतंत्र है. जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन. चुनावों का होना या फिर वोट देना मात्र ही इस बात का प्रमाण नहीं है कि हमारा जनतंत्र फल-फूल रहा है. वोट मांगने वाले और वोट देने वाले, दोनों, का दायित्व बनता है कि वह जनतंत्र की इस पूरी प्रक्रिया में ईमानदारी से हिस्सा लें.  झूठे वादे करना, धर्म और जाति के नाम पर मतदाताओं को बरगलाना, आधारहीन आरोपों के शोर में विवेक की आवाज़ को दबा देना, यह सब तो जनतंत्र नहीं है. सभी दल अपने-अपने महिमा-मंडन में लगे हैं, सबकी अपनी डफली और अपना राग है. पांच राज्यों मे राजनीति ‘पहले की सरकारों’ को कोसने से लेकर अपना ढोल बजाने तक सीमित होकर रह गयी है. मध्यप्रदेश, राजस्थान  में अपने आप को जितना बड़ा नेता समझता-कहता है, वह उतने ही ज़ोर से विरोधी पर लांछन लगाने में लगा है. चुनाव वाले राज्यों में विरोधी को नीचा दिखाने की कोशिश और दूसरे रेवड़ियां बांटने की प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है.मतदाताओं को लुभाने की होड़ लगी हुई है चाहत है कि किसी तरह गद्दी मिल जाए.

पांच में से तीन राज्य (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) हिंदी पट्टी के हैं. यहां केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का सीधा मुक़ाबला है. हालांकि, चुनाव मैदान में दूसरे दल भी हैं लेकिन मुख्य लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी में मानी जा रही है. इन तीन में दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है और मध्य प्रदेश में बीजेपी का शासन है. 

 छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर लिखा कि , “हैं तैयार हम. ”उनके इस एलान को जीत के दावे के दौर पर देखा जा रही है.बघेल ने कहा, “शुरू हो चुका है युद्ध माटी के अभिमान का. नहीं रूकेगा अब ये रथ छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान का. ”वहीं, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता रमन सिंह ने राज्य में बदलाव का दावा किया है.उन्होंने कहा, “पांच साल में विकास शून्य हो गया है. छत्तीसगढ़ की जनता के मन में इस सरकार के प्रति नाराज़गी भी है और वो इंतज़ार कर रहे थे कि कब चुनाव घोषित हो, आचार संहिता लागू हो और अधिकारी आज़ादी के साथ काम कर सकें. ”

चुनावों में पैसे बांटने का मामला कोई नया नहीं है. चुनाव आयोग इसपर कड़ी नजर रकने का दावा करता है फिर भी यह रुक कहां पाता है. स्कूलों में बच्चों की फीस माफ हो, गैस-बिजली आदि की दरें कम की जाएं, सस्ती दरों पर जरूरतमंदों को अनाज बांटा जाये, यह तो फिर भी समझ में आता है, पर यह समझना मुश्किल है कि  रिश्वत लेना या देना अपराध है पर यह अपराध हमारे राजनीतिक दल रूपए बांट रहे तो  उन्हें कोई सज़ा नहीं मिलनी चाहिए?

कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों के नेता मध्य प्रदेश में जीत हासिल करने का दावा कर रहे हैं. भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजवर्गीय ने कहा है कि पार्टी का कार्यकर्ता चुनाव के लिए तैयार है.बीजेपी ने विजयवर्गीय को भी उम्मीदवार बनाया है और इसे लेकर प्रदेश की राजनीति में काफी चर्चा हो रही है.उन्होंने दावा किया, “चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले होंगे, हम दो तिहाई बहुमत से सभी राज्यों में चुनाव जीतने वाले हैं.”वहीं, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने दावा किया है कि कांग्रेस पार्टी बड़ी जीत हासिल करेगी.उन्होंने कहा, “भारतीय जनता पार्टी के भ्रष्टाचार और कुशासन से लोग नाराज़ हैं. कांग्रेस को इतनी सीटें मिलेंगी, जितनी पहले कभी नहीं मिलीं होंगी. ”

निजामाबाद से भाजपा सांसद अरविंद धर्मपुरी ने मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और उनके बेटे केटी रामाराव के मरने को लेकर बयान दे दिया. बयान के बाद से प्रदेश में काफी विवाद खड़ा हो गया है.अरविंद धर्मपुरी ने एक जनसभा में कहा कि अगर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव और उनके बेटे केटी रामाराव की मृत्यु हो जाती है तो भाजपा दोनों को आर्थिक मदद देगी। इस बयान के बाद बीआरएस ने भी पलटवार किया. उन्होंने आगे बीआरएस प्रमुख चंद्रशेखर राव और उनके बेटे रामाराव पर निशाना साधते हुए कहा, ‘अगर चंद्रशेखर राव मर जाते हैं तो भाजपा उनके परिवार को पांच लाख रुपये देगी और अगर उनके पुत्र रामाराव मर जाते हैं तो हम इस राशि को बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर देंगे उन्होंने कहा, ‘वैसे भी केसीआर का समय खत्म हो चुका है। यदि युवा लोग मरते हैं, तो राशि बढ़ा दी जाएगी. यदि केसीआर की बेटी कविता मर जाती हैं तो मैं 20 लाख रुपये की घोषणा करूंगा.

 चुनाव ऐसी लड़ाई बन गया है जिसमें सब कुछ जायज मान लिया गया है. यहां तक कि विरोधियो पर शब्दों की मर्यादा भी तार तार हो जा रही है. कभी हमरी संसद  तक में ऐसे शब्द काम में लिये गये थे,चुनाव जीतने के लिए ही लड़े जाते हैं, पर किसी भी कीमत पर जीत हमारे जनतंत्र को खोखला ही बनायेगी. संप्रदायवादी ध्रुवीकरण और अवसरवादी राजनीति के सहारे खड़ा किया गया सत्ता का महल भीतर से खोखला ही होता है.अभी पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, फिर लोकसभा के लिए चुनाव होंगे.आने वाले कुछ दिन राजनीति का घटिया खेल खेलने वाले राजनेताओं द्वारा मतदाता को बरगलाने की कोशिश का अवसर हैं. लच्छेदार भाषा में अपना ढोल पीटने वाले राजनीति के ठेकेदार मुस्लिमों के सबसे बड़े हमदर्द बनने की कोशिश करते हैं तो कोई हिन्दुओं का रखवाला दिखाने का प्रयास कर रहा है. कोई सनातन धर्म पर अनापशनाप बोल कर सुर्खियां बटोर रहा है तो कोई श्रीरामचरित मानस पर अनर्गल प्रलाप कर मुस्लिम धुव्रीकरण में जुटा है. बहरहाल जज जनता है उसके फैसले का इंतजार है.


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