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स्वतंत्रता के बाद लोकतांत्रिक परंपराओं का गवाह रहा पुराना संसद भवन बना इतिहास, काउंसिल हाउस से भारत के संसद भवन तक, 95 साल पुरानी इमारत का गौरवमय रहा इतिहास

स्वतंत्रता के बाद लोकतांत्रिक परंपराओं का गवाह रहा पुराना संसद भवन बना इतिहास, काउंसिल हाउस से भारत के संसद भवन तक, 95 साल पुरानी इमारत का गौरवमय रहा इतिहास

दिल्ली- संसद का विशेष सत्र शुरू हो गया. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सदन को संबोधित किया. पीएम मोदी ने कहा, नए सदन में जाने से पहले उन प्रेरक पलों, , इतिहास की महत्वपूर्ण घड़ियों का स्मरण करते हुए आगे बढ़ने का ये अवसर है. हम सब इस ऐतिहासिक भवन से विदा ले रहे हैं. आजादी से पहले ये सदन काउंसिल का स्थान हुआ करता था. आजादी के बाद संसद भवन के रूप में इसे पहचान मिली.सोमवार को देश का सबसे बड़ा लोकतंत्र का मंदिर संसद भवन पुराना संसद भवन बन गया है, यह भवन भारतीय संविधान के निर्माण से लेकर आधुनिक लोकतंत्र के जन्म से लेकर प्रवीण होने का गवाह रहा है. सोमवार को पांच दिवसीय विशेष संसद सत्र का पहले दिन इस संसद भवन की संसदीय कार्यवाही का आखिरी दिन था. संसद भवन में पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक के कार्यकाल को पीएम नरेंद्र मोदी ने याद किया. वहीं पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक के उद्बोधन को संस्मरण करते हुए लोकतंत्र के मंदिर के इतिहास को याद किया गया.


पुराने संसद भवन में देश के पंद्रह प्रधानमंत्रियों ने संवाद के जरिए नीति निर्धारण  के जरिये देश की दशा सुधारने और नई दिशा देने का गुरुतर दायित्व निभाया.  एक दक्ष लोकतंत्र के रूप में पिछले करीब सात दशक में सामूहिकता के निर्णय का गवाह रहा है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का गवाह रहा है पुराना संसद भवन.जब भी देश पर कोई बड़ा संकट आया, पक्ष-विपक्ष ने एकजुट होकर उसका सामना किया. पुरानी संसद का भवन देश के कई बदलाव करने वाले निर्णयों का गवाह रहा. देश के स्वतंत्र होने के बाद इसको लोकतंत्र का मंदिर बनाया गया . लोकतंत्र में संसद भवन केवल एक भवन नहीं होता, यह देश का ह्रदय रहा है, जो भारत के डेढ़ अरब लोगों के लिये धड़कता रहा है.  जिसकी साख को 75 साल में देश के हर राजनीतिक दल ने समृद्ध किया.


1947 में देश की स्वतंत्रता के बाद, प्रांतीय गवर्नरों को संवैधानिक प्रमुख बनाया गया, वहीं ब्रिटिश सरकार से भारत की संसद को ज़िम्मेदारी सौंपी गई.भारत के संविधान निर्माताओं ने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में बैठकर संविधान बनाया. 1952 में पहला चुनाव होने के बाद से यह अस्तित्व में है.


 देश में बढ़ती आबादी और संसदीय क्षेत्रों के विस्तार के बाद अधिक सासंदों के लिये नये भवन की जरूरत महसूस की जा रही थी. नये भवन में बेहतर सहूलियतें व नई तकनीक से सांसदों की कार्यक्षमता को बढ़ावा मिलेगा.भारतीय लोकतंत्र की गौरवशाली विरासत का विस्तार हमेशा जारी रहे, यह जन-भावनाओं की अभिव्यक्ति का मंच बना रहे, जिससे यह देश दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र होने को सार्थक कर सके. संसद देश के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की मुखर आवाज का मंच है तो वहीं लोकतंत्र के मंदिर के प्रति लोगों की आस्था का केंद्र भी है.1927 में बना संसद भवन अपनी सामान्य उम्र से लगभग 30 साल ज्यादा लोगों के भार ढो चुका है. नई जरूरतों के अनुसार संसद के अंदर कई बदलाव किए गए हैं, एसी आदि की व्यवस्था की गई . इसके कारण ढांचा और भी कमजोर हो चुका है. चीफ इंजीनियर की रिपोर्ट में ही दूसरे देशों और खासकर आस्ट्रेलिया का उदाहरण देते हुए कहा गया कि वहां भी संसद भवन 1927 में बना था लेकिन 60 साल के बाद नया भवन बनाया गया था. लिहाजा भारत में भी इसकी बहुत जरूरत महसूस की जा रही थी.सांसदों के लिए बैठने की जगह की दिक्कत. 2026 के बाद लोकसभा सीटों की संख्या वर्तमान 545 से ज़्यादा बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है, ऐसे में आगे बहुत सी दिक्कत जगह से लेकर हो सकती है. सांसदों के बैठने के लिए मौजूद डेस्क बहुत तंग है और दूसरी पंक्ति के आगे कोई डेस्क नहीं है. सेंट्रल हॉल में केवल 440 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता है. जब संयुक्त सत्र आयोजित होते हैं तो सीमित सीटों की समस्या बढ़ जाती है. यहां सुरक्षा से जुड़े मुद्दे भी हैं.  बुनियादी ढांचे से जुड़ी दिक्कतें, पुराने संसद भवन में जल आपूर्ति और सीवर लाइनें, एयरकंडीशनिंग, अग्निशमन उपकरण, सीसीटीवी कैमरे आदि से जुड़ी कई दिक्कतें थीं आधिकारिक साइट का कहना है कि इमारत में अग्नि सुरक्षा एक बड़ी चिंता जताई गई ती इस ही तरह के कई और बड़े मुद्दे हैं जिनके रहते पुरानी संसद को छोड़ने के पीछे के तर्क दिए जा रहे हैं.


बहरहाल पुराना संसद भवन आजाद भारत के निर्णायक फैसलों का गवाह रहा. आजादी के बाद भारत के लोकतंत्र की दिशा निर्धारित करने वाले संविधान के निर्माण का कार्य इस सदन में हुआ तो भवन में अहर्निश चलने वाली संविधान सभा की 165 बैठकों के बाद 26 जनवरी 1950 को नया संविधान अस्तित्व में आया. सबको साथ लेकर चलना ही लोकतंत्र की खूबी है. पुराना संसद भवन भारत का इतिहास है.


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