बिहार में कितने पत्रकारों की हुई हत्या? सिवान में राजदेव रंजन के बाद से अब तक...जानिए डिटेल्स,कितने सुरक्षित हैं राज्य में रिपोर्टर

DESK : अररिया के रानीगंज में दिनदहाड़े दैनिक अखबार के पत्रकार विमल यादव  की हत्या कर दी गई. अपराधियों ने घर के दरवाजे पर चढ़कर मेन गेट खुलवाया. जैसे ही पत्रकार गेट पर आए वैसे ही सीने में गोली दाग दी. हत्या के बाद इलाके में हड़कंप मच गया. आसपास के लोगों की भीड़ लग गई. इधर, सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और जांच में जुट गई.

बिहार के अररिया जिले में पत्रकार विमल कुमार यादव की हत्या पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 'सुशासन बाबू' वाली छवि पर धब्बा लगता दिख रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए दुख जताया और अपराधियों पर कठोर कार्रवाई करने का वादा किया.वहीं विपक्ष हमलावर है.यह हत्या कांड सुर्खियों में है.

 भारत में पत्रकारों पर हो रहे लगातार हमलों ने फ्री प्रेस और लोकतंत्र के चौथे खम्बे के खोखलेपन को उजागर करके रख दिया. देश के छोटे-छोटे शहरों में काम कर रहे पत्रकारों की हत्या और उन पर हुए हमले लोकतंत्र और फ्री प्रेस की दुहाई के मुंह पर तमाचा है. पत्रकार की हत्या मामूली नहीं होती असल मे वो उस सच की हत्या होती है जिसे सफेदपोश भेड़िये छुपाना चाहते हैं.

 इस घटना ने पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या की याद दिला दी है. राजदेव की 13 मई, 2016 को सिवान रेलवे स्टेशन के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस मामले में सिवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन सहित आठ आरोपितों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. इसमें से एक आरोपी को कोर्ट ने किशोर घोषित कर किशोर न्याय परिषद को सौंप दिया था. वहीं, दूसरी ओर इस मामले में पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की मौत हो चुकी है. छह अन्य आरोपी अभी भी जेल में बंद हैं.बिहार अब तक कई पत्रकारों पर जानलेवा हमले किये गये जिनमे से कई पत्रकारों की निर्मम हत्या कर दी गई, जबकि कई मामले पकाश में ही नहीं आये हैं.

याद कीजिए साल 2022 बेगूसराय जिले में वेब पोर्टल पत्रकार सुभाष कुमार  की गोली मारकर बदमाशों ने हत्या कर दी. घटना परिहारा ओपी क्षेत्र के सांखू गांव में घटित हुआ था. गोली लगने के बाद इलाज के लिए सुभाष कुमार को पीएचसी में भर्ती कराया गया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. कथित तौर पर पत्रकारिता के माध्यम से सुभाष द्वारा लगातार बालू माफियाओं के खिलाफ खबर चलाया जा रहा था, जिसके विरोध में इस तरह की घटना को अंजाम दिया गया.


2022 में हीं बिहार के सुपौल में वरिष्ठ पत्रकार महाशंकर पाठक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई.

2021 में पत्रकार बुद्धिनाथ झा की  हत्या कर दी गई.घटना नवंबर 2021 की थी, जब स्थानीय पत्रकार बुद्धिनाथ झा उर्फ अविनाश का मर्डर कर दिया गया था. परिजनों ने बताया कि अविनाश झा को घर के पास के किडनैड कर हत्या की गई थी. बिहार के पूर्वी चंपारण में भी अगस्त 2021 में एक पत्रकार मनीष सिंह की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. तीन दिन से लापता रहे युवा पत्रकार मनीष कुमार सिंह का शव गड्ढे में मिला था. वो घर से दावत खाने के लिए निकले थे. इसके पूर्व भी पत्रकारों पर जानलेवा हमले हुए है कई मारे भी गए हैं पत्रकारों पर लगातार हमले और हत्याओं ने सिद्ध कर दिया है कि माफियाओं, पुलिस और भ्रष्ट नेताओं की इस देश में कितनी चलती है और पत्रकार कितने असुरक्षित हैं.

भारतीय प्रेस परिषद के मुताबिक भारत में बीते 25 सालों में 79 पत्रकार अपना काम करते हुए जान दे चुके हैं.  सूदूर इलाको में काम करने वाले पत्रकार छोटी-छोटी खबरों के लिये अपने प्राण संकट में डालते हैं.उग्रवाद ग्रस्त या नक्सल प्रभातिव इलाकों में ये पत्रकार किस तरह काम करते हैं कभी सोचा नही गया .क्रिमिनल गैंग्स, राजनीतिक दलों और प्रदर्शनकारियों पर भी पत्रकारों पर हमले के आरोप लगे. लेकिन इनमे स्थानीय पुलिस और सुरक्षा व्यव्स्था भी प्रश्न चिह्न लगा.इनपर  पत्रकारों के खिलाफ हुई हिंसा के मामलों में बाहुबलियों, और माफियाओं के दबाव में कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगा.

शर्म की बात है कि आजादी के 76 साल बाद भी लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ, अर्थात पत्रकारों के लिये आज तक सुरक्षा कानून नहीं है. देश में आज भी अंग्रेजो का बनाया कानून पीआरबीपी एक्ट 1867 कुछ मामूली संशोधनों के साथ लागू है. आखिर कब तक पत्रकार निशाना बनेंगे,कब उन्हें जीवन की सुरक्षा की गारंटी मिलेगी,अखिर कब तक पत्रकारों के सुरक्षा के लिए कानून बनेंगे.आखिर कब तक....