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मोदी के मंत्री की बढ़ी टेंशन, रामेश्वरम कैफे ब्लास्ट मामले में हाईकोर्ट के तीखे सवाल - 'धमाका करने वाले को जानती थी क्यों नहीं पुलिस को बताया'

मोदी के मंत्री की बढ़ी टेंशन, रामेश्वरम कैफे ब्लास्ट मामले में हाईकोर्ट के तीखे सवाल - 'धमाका करने वाले को जानती थी क्यों नहीं पुलिस को बताया'

DESK. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्य मंत्री का बड़बोलापन उनके लिए बड़ी मुसीबत बन गया है. एक कैफे ब्लास्ट मामले में कोर्ट ने उनसे पूछा है कि अगर धमाका करने वाले, धमाके के लिए प्रशिक्षण देने वाले और धमाके से जुड़े अन्य विषयों की केंद्रीय मंत्री को पहले से जानकारी थी तो उन्होंने इसे पुलिस को क्यों नहीं बताया. कोर्ट ने उनके कथित दावों पर जमकर लताड़ लगाई है. यह मामला  बेंगलुरु के रामेश्वरम कैफे में 1 मार्च को हुए विस्फोट से जुड़ा है. 

धमाके के बाद केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने सार्वजनिक दावा किया था कि कैफे विस्फोट में शामिल हमलावरों को तमिलनाडु में प्रशिक्षित किया गया था. उनके इस दावे के खिलाफ अब मद्रास हाईकोर्ट ने एक याचिका पर संज्ञान लिया है. कोर्ट ने इसका मतलब है कि आप तथ्यों से अवगत हैं, आप जानते हैं कि प्रशिक्षित व्यक्ति कौन हैं, उन्हें किसने प्रशिक्षित किया और उन्होंने क्या किया है। यदि आपको अपराध के बारे में कुछ जानकारी मिली है, तो आपको इसे पुलिस को बताना चाहिए था। एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर मंत्री ने ऐसा नहीं किया है। 

शोभा करंदलाजे का एक वीडियो वायरल हुआ था, उसमें केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्य मंत्री ने कथित तौर पर बेंगलुरु के रामेश्वरम कैफे में 1 मार्च को हुए विस्फोट के लिए तमिलनाडु के लोगों को दोषी ठहराया था। तमिलनाडु के लोग यहां आते हैं, वहां प्रशिक्षण लेते हैं और यहां बम लगाते हैं। उन्होंने कैफे में बम रखा। उन्होंने आरोप लगाया कि हमलावर को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की नाक के नीचे तमिलनाडु के कृष्णागिरी जंगलों में प्रशिक्षित किया गया था। बाद में 19 मार्च को करंदलाजे ने अपनी टिप्पणी के लिए माफ़ी मांगी.

हालाँकि शोभा करंदलाजे की ओर से अपने बयान के लिए माफी मांगते हुए कहा गया कि उनका बयान सिर्फ देश की आंतरिक चिंताओं से जुड़ा है. वह कन्नड़ और तमिल भाषी लोगों के बीच किसी प्रकार से मतभेद बढ़ाना नहीं चाहती थी. शोभा ने कहा कि उनके खिलाफ याचिका में शिकायतकर्ता ने अपनी कल्पना के आधार पर यह माना कि दोनों राज्यों में मतभेद बढ़ाने वाला बयान था. वहीं कोर्ट ने पूरे मामले में शोभा के बयान पर सख्त टिप्पणी कि कि उन्हें एक जिम्मेदार पद पर रहते हुए सार्वजनिक बयान देने में उसके अर्थ को समझना चाहिए. 

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