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सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सियासत शुरु, तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता देना पर्सनल लॉ बोर्ड को गुजर रहा नागवार, मुस्लिम संगठन करने लगे जमकर विरोध...निर्णय को बता रहे इस्लामी कानून के खिलाफ...

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सियासत शुरु, तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता देना पर्सनल लॉ बोर्ड को गुजर रहा नागवार,  मुस्लिम संगठन करने लगे जमकर विरोध...निर्णय को बता रहे  इस्लामी कानून के खिलाफ...

दिल्ली- देश की सबसे बड़ी अदालत ने 10 जुलाई 2024 को वैसा ही निर्णय सुनाया जैसा 39 साल पहले 23 अप्रैल 1985 को शाहबानो मामले में फैसला दिया था. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने ये फैसला सुनाया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. शाहबानो मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह का निर्णय सुनाया था.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजाराभत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत ठहराया है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  की वर्किंग कमेटी ने रविवार को एक बैठक कर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर चर्चा की. इस बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें कहा गया कि यह फैसला 'शरिया' के खिलाफ है. लिहाजा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  सभी संभावित उपायों का पता लगाएगा जिससे सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले को पलटने को कह सके.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  की वर्किंग कमेटी में 51 सदस्य हैं जिसमें 5 महिलाएं भी शामिल हैं.इस बैठक में 8 प्रस्ताव पास किए गए.कमेटी ने कहा कि कोर्ट का फैसला शरीयत से अलग है और मुसलमान शरीयत से अलग नहीं सोच सकता है. हम शरीयत के पाबंद हैं. हम इससे अलग नहीं सोच सकते हैं. कमेटी ने कहा कि शादी - विवाह के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिक्कत पैदा करेगा. वर्किंग कमेटी ने कहा कि जब किसी शख्स का तलाक हो गया है तो फिर गुजारा भत्ता कैसे मुनासिब है. 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड   ने कहा कि संविधान हमें  हक देता है की हम अपने धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं के हिसाब से जी सकते हैं. उत्तराखंड यूसीसी पर बोर्ड ने कहा कि यह सांस्कृतिक विरासत खत्म करने की साजिश है और इसे हम अदालत में चुनौती देंगे. 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में तय किया गया है कि गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेंगे. बैठक में वर्किंग कमेटी ने बोर्ड को अथॉरिटी दी है कि लीगल कमेटी से बात कर इस फैसले को रोलबैक करने की दिशा में काम किया जाए. बोर्ड के प्रवक्ता ने कहा है कि हमने ये महसूस किया है कि देश में हिंदुओं के लिए हिंदू कोड बिल है और मुसलमानों के लिए शरिया लॉ है. कोर्ट का ये फैसला शरियत से कॉन्फ्लिक्ट करता है लिहाजा हम पूरी कोशिश करेंगे कि इस फैसले को रोलबैक किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देश के तमाम बड़े मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी कोर्ट के फैसले के खिलाफ नाराजगी जताई थी. जमीयत ने इसे शरिया कानून में दखल बताया था. वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  ने बैठक कर साफ कर दिया है कि वो इस फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेगी

बता दें इससे पहले  शाह बानो केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने इससे मिलता जुलता फैसला सुनाया था. शाहबानो ६२ साल की मुसलमान महिला और पाँच बच्चों की माँ थीं, जिन्हें १९७८ में उनके शौहर ने तालाक दे दिया था. तर्क दिया गया कि मुस्लिम पारिवारिक कानून के अनुसार पति पत्नी की मर्जीके खिलाफ ऐसा कर सकता है.अपनी और अपने बच्चों की जीविका का कोई साधन न होने के कारण शाह बानो शौहर से गुजारा लेने के लिये कोर्ट के दरवाजे पर  पहुचीं. देश की सबस,े बड़ी अदालत ने अपराध दंड संहिता की धारा १२५ के अंतर्गत निर्णय लिया जो हर किसी पर लागू होता है चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो. सुप्रीम कोर्ट  ने फैसला दिया कि शाह बानो को निर्वाह-व्यय के समान जीविका दी जाय.रूढ़िवादी मुसलमानों के अनुसार यह निर्णय उनकी संस्कृति और विधानों पर अनाधिकार हस्तक्षेप था. बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उनकी मांगें मानते हुए  एक कानून पास किया जिसने शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को उलट दिया.

सुप्रीम कोर्ट के तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के फैसले का मुस्लिम संगठन जमकर विरोध कर रहे हैं.  देश में एकबार फिर से चर्चा जोर पकड़ने लगी है आखिर कब तक  मुस्लिम महिलाओं को उनका हक मिलेगा. 


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