बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

लोकसभा चुनाव में फिसड्डी साबित हुए पहली बार उतरे ‘बिहार के नेता पुत्र-पुत्रियां’, सिर्फ एक को मिली कामयाबी

लोकसभा चुनाव में फिसड्डी साबित हुए पहली बार उतरे ‘बिहार के नेता पुत्र-पुत्रियां’, सिर्फ एक को मिली कामयाबी


लोकसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं और बिहार में एनडीए को 30 और इंडिया ब्लॉक को 10 सीटें मिली हैं। इस चुनाव में कई चेहरे ऐसे थे, जो अपने परिवार की राजनीति को विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उतरे थे। पाटलिपुत्र, सारण, समस्तीपुर, महारागंज, पटना साहिब ऐसी सीट थी जहां राजनीति से जुड़े परिवार के बच्चों को मौका दिया गया था। लेकिन इनमें सिर्फ एक को ही सफलता मिली, बाकी सभी को जनता ने सिरे से खारिज कर दिया।

शुरूआत सारण सीट से करें तो यहां राजीव प्रताप रूडी के सामने गरीबों के मसीहा कहे जानेवाले लालू प्रसाद ने अपनी बेटी रोहिणी को मौका दिया था। रोहिणी के लिए राजनीति इस ग्रेंड इंट्री के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन चुनाव में वह सफलता नहीं हासिल कर सकीं और राजनीति में उनकी इंट्री फेल साबित हुई।

अखिलेश भी नहीं दिला सके बेटे को जीत

इसी तरह पटना साहिब और महाराजगंज में भी कांग्रेस ने एक राजनीतिक परिवार के चेहरे को पहली बार मौका दिया। जहां महाराजगंज में बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह के बेटे आकाश मैदान में थे। वहीं पटना साहिब में लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार के बेटे अंशुल अविजीत को मौका मिला था। लेकिन आकाश महाराजगंज में जर्नादन सिंह सिग्रिवाल तीसरी बार जीतने से नहीं रोक पाए, वहीं पटना साहिब में अंशुल अविजीत भाजपा से यह सीट छीन नहीं सके। इन दोनों की भी राजनीति की शुरूआत खराब रही।

समस्तीपुर में शांभवी ने बचाई विरासत

बिहार में समस्तीपुर लोकसभा सीट पर दो राजनीतिक परिवारों के बच्चों के बीच मुकाबला था। जहां चिराग पासवान की पार्टी ने बिहार में मंत्री अशोक चौधरी की बेटी शांभवी को मौका दिया था। वहीं शांभवी के सामने बिहार सरकार के दूसरे मंत्री महेश्वर हजारे के बेटे सन्नी हजारी थे। जिन्हें कांग्रेस ने मौका दिया था। दोनों के पिता की बिहार में अपनी पहचान है। ऐसे में माना जा रहा था कि उनके बीच कड़ा मुकाबला होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सन्नी हजारे पिता की विरासत को आगे नहीं बढ़ा सके।

वहीं सिर्फ शांभवी चौधरी इकलौता ऐसा चेहरा रही, जो परिवार के राजनीतिक विरासत को बचाने में कामयाब रही। वह लोकसभा में सबसे कम उम्र की महिला सांसद बनी है। 


Suggested News